भोपाल। राजधानी में होटल और रेस्टोरेंट्स के बाहर भट्टियां और तंदूर एक बार फिर धुआं उगलने लगे हैं, जिससे न सिर्फ वायु प्रदूषण बढ़ रहा है, बल्कि आम जनता भी इससे परेशान हो रही है। यह स्थिति तब है, जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पिछले साल ऐसे तंदूरों और भट्टियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था।
एनजीटी के आदेश की अवहेलना
पिछले साल, भोपाल निवासी प्रतीक भोंसले की पत्र याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी की सेंट्रल जोन बेंच ने 14 अक्टूबर 2023 को शहर में सड़कों के किनारे कोयले और लकड़ी से जलने वाली भट्टियों और तंदूरों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था। एनजीटी ने यह निर्णय वायु प्रदूषण और स्वच्छता मानकों को ध्यान में रखते हुए लिया था, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि इन तंदूरों के संचालन के लिए उचित अनुमति और पर्यावरणीय नियमों का पालन जरूरी है।
शुरुआती कार्रवाई के बाद ढिलाई
एनजीटी के आदेश के बाद नगर निगम और पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने तेजी से कार्रवाई शुरू की थी। दो महीनों के दौरान 30 से अधिक होटलों और रेस्टोरेंट्स के खिलाफ जुर्माने की कार्रवाई की गई और कई भट्टियां जब्त की गई थीं। अशोका गार्डन इलाके में तो 17 रेस्टोरेंट्स को सील भी किया गया था। इसके बाद, नवंबर 2023 में पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने एक और मुहिम चलाई, जिसमें कई दुकानों और होटलों के लाइसेंस निरस्त किए गए। लेकिन अब, कार्रवाई ठंडी पड़ गई है और भट्टियां फिर से जल रही हैं।
हजारों तंदूर फिर से धुआं उगलते हुए
एक अनुमान के मुताबिक, भोपाल में 10,000 से ज्यादा तंदूर और भट्टियां हर दिन सुलग रही हैं। इनमें से अधिकांश छोटे होटलों, ठेलों, और बड़े रेस्टोरेंट्स में बिना किसी नियम का पालन किए उपयोग हो रहे हैं। होटल संचालक एक से अधिक तंदूर और भट्टियां भी इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे वायु प्रदूषण और बढ़ रहा है।
स्थानीय लोगों की शिकायतें
काजी कैंप, जहांगीराबाद, बुधवारा, इतवारा जैसे इलाकों के निवासी इस बढ़ते प्रदूषण से परेशान हैं। स्थानीय निवासी दिलशाद शेख का कहना है, “होटल संचालकों को धुआं निकलने के लिए प्रॉपर डक्ट लगानी चाहिए ताकि लोगों को परेशानी न हो।” वहीं, शाहिद सिद्दीकी का कहना है, “अगर छोटे होटलों पर कार्रवाई हो रही है, तो बड़े होटलों पर भी होनी चाहिए। होटल संचालकों को नियमों का पालन करते हुए तंदूर और भट्टियां जलानी चाहिए।”
प्रशासन की प्रतिक्रिया
भोपाल की महापौर मालती राय ने कहा, “मुझे इस बात की जानकारी नहीं है कि होटलों और रेस्टोरेंट्स में जलने वाले तंदूरों के खिलाफ कोई मुहिम चल रही है या बंद हो गई है। मैं अधिकारियों से चर्चा कर इस पर जानकारी प्राप्त करूंगी।”
सवाल उठता है- एनजीटी के आदेश का अमल कब होगा?
एनजीटी के आदेश के बावजूद, शहर में प्रदूषण नियंत्रण के लिए उठाए गए कदम लंबे समय तक कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, और यह देखना जरूरी है कि प्रशासन कब इस मुद्दे पर गंभीरता से अमल करेगा।
भोपाल में लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण के बीच, एनजीटी के आदेशों की अनदेखी एक गंभीर चिंता का विषय है। अब देखना यह है कि प्रशासन कब तक इस मुद्दे को संज्ञान में लेकर ठोस कदम उठाएगा।