ग्वालियर। हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने धर्मांतरण के संबंध में अहम आदेश दिया है। जस्टिस रोहित आर्या और जस्टिस एमआर फड़के की डिवीजन बेंच ने राहुल की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि किसी भी संस्था या व्यक्ति को धर्म परिवर्तन कराने का अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ता के अतिरिक्त महाधिवक्ता एमपीएस रघुवंशी ने बताया- यदि किसी व्यक्ति को धर्मांतरण करना है तो उसे 60 दिन पहले संबंधित जिले के कलेक्टर को अनिवार्य रूप से सूचना देना होगा। ऐसा नहीं करने पर दंड देने का भी प्रावधान है। इसके साथ ही डिवीजन बेंच ने आर्य समाज विवाह मंदिर ट्रस्ट द्वारा जारी विवाह और धर्म परिवर्तन प्रमाण-पत्र को शून्य घोषित कर दिया।
ट्रस्ट ने सितंबर 2019 में प्रमाण पत्र जारी किए थे। डिवीजन बेंच ने एसएसपी गाजियाबाद को ट्रस्ट की जांच करने और नियमानुसार कार्रवाई करने का आदेश दिया है। वहीं, एक साल से सुधार गृह में रह रही हिना की वीडियो कॉन्फ्रेंस (वीसी) के माध्यम से माता-पिता से बात कराई जाएगी, जिसे रिकॉर्ड भी किया जाएगा। यदि उसने माता-पिता के साथ जाने से इनकार किया तो उसे अपनी मर्जी से रहने की अनुमति दी जाएगी। एडवोकेट सुरेश अग्रवाल ने बताया कि राहुल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की और हिना के जबरन सुधार गृह में बंदी बनाने का आरोप लगाया। कोर्ट को बताया गया कि उसने और हिना ने 17 सितंबर 2019 को आर्य समाज विवाह मंदिर ट्रस्ट गाजियाबाद से शादी कर ली है। चूंकि, हिना के पिता ने पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी।
इस पर हिना व राहुल शिवपुरी में एडीएम के समक्ष उपस्थित हुए और एडीएम को बताया कि हम दोनों ने शादी कर ली है। पुलिस ने एडीएम के आदेश पर 6 सितंबर 2021 को युवती को सुधार गृह और राहुल को जेल भेज दिया। यहीं से मामला सामने आया कि गाजियाबाद के कविनगर में संचालित आर्य समाज विवाह मंदिर ट्रस्ट ना केवल शादी कराता है, बल्कि प्रमाण पत्र भी जारी करता है। इसके साथ ही ट्रस्ट द्वारा धर्म परिवर्तन का काम भी किया जा रहा है। इस कृत्य पर हाईकोर्ट ने गंभीर आपत्ति जताई। शासन की ओर से पैरवी करते हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता एमपीएस रघुवंशी ने कहा कि ट्रस्ट का काम केवल शादी के लिए व्यवस्था करने तक सीमित है। ऐसे ट्रस्ट का शादी कराना और प्रमाण पत्र जारी करना विधि विरुद्ध है। यहीं नहीं, धर्म परिवर्तन भी बिना प्रक्रिया के कराया जा रहा है, जो कि दंडनीय अपराध है।