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हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, संविदा शिक्षक को 10 साल का वेतन मिलेगा

इंदौर। इंदौर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एक संविदा शिक्षिका के मामले में महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। मामले में एक महिला शिक्षिका को अनुपस्थिति के कारण नौकरी से हटा दिया गया था। कोर्ट ने इस फैसले को मनमाना मानते हुए शिक्षिका को 10 साल का 50% वेतन, 6% ब्याज और नौकरी पर बहाल करने का आदेश दिया है।

मामला
2015 में शिक्षिका अरुणा सहाय को 86 दिनों की अनुपस्थिति के कारण नौकरी से हटा दिया गया था। हालांकि, इन 86 दिनों में शनिवार, रविवार, राष्ट्रीय अवकाश और त्योहारों के दिन भी शामिल थे। शिक्षिका ने यह फैसला चुनौती दी और जिला पंचायत सीईओ की बजाय जनपद सीईओ द्वारा जारी नोटिस को गलत बताते हुए शासन के समक्ष अपील की, लेकिन राहत नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

हाईकोर्ट का फैसला
कोर्ट ने कहा कि शिक्षिका को अपनी बात रखने का अवसर नहीं दिया गया और सेवा समाप्ति का आदेश मनमाने तरीके से दिया गया। हाईकोर्ट ने शासन को 10 साल का 50% वेतन, 6% ब्याज और नौकरी पर बहाल करने का आदेश दिया। यह फैसला संविदा कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण राहत साबित हो सकता है, क्योंकि अक्सर कर्मचारियों को बिना उचित प्रक्रिया के नौकरी से हटा दिया जाता है।

वकील का पक्ष
याचिका अरुणा सहाय की ओर से अधिवक्ता राघवेंद्र सिंह रघुवंशी ने दायर की थी। उन्होंने कैलेंडर पेश कर साबित किया कि 86 दिनों में छुट्टियों के दिन भी शामिल थे।

ब्लैकलिस्टेड कंपनी को ठेका देने पर सवाल
हाईकोर्ट ने कर्मचारी चयन आयोग से सवाल किया है कि क्यों विभिन्न ऑनलाइन परीक्षाओं का ठेका एक ब्लैकलिस्टेड कंपनी को दिया गया। यह सवाल एक जनहित याचिका पर उठाया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया कि इन कंपनियों को पूर्व में ऑनलाइन परीक्षाओं के लिए अपात्र घोषित किया गया था।

कोर्ट की प्रतिक्रिया
जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस अनुराधा शुक्ला की खंडपीठ ने कर्मचारी चयन आयोग के चेयरमैन, केंद्रीय कौशल विकास मंत्रालय और दोनों कंपनियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कोर्ट ने गंभीरता से कहा कि ब्लैकलिस्टेड कंपनियों को ठेका देना उचित नहीं है।

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