दतिया: दतिया csx मृतकों के परिजनों के सामने मुआवजे की बोली लगाने की कोशिश की गई, जहां सस्ती लोकप्रियता की जंग को एक बार फिर उजागर कर दिया है। अत्यधिक वर्षा के कारण हुए हादसे में सात लोगों की जान गई, जो अपने आप में एक दुखद घटना है। लेकिन इस दुख की घड़ी में नेता अपनी राजनीति चमकाने में लगे रहे।
बीजेपी नेता नरोत्तम मिश्रा द्वारा मीडिया के सामने मृतकों के परिजनों से मुआवजे की “बोली” लगवाई गई, वह ऐसा लग रहा था मानो कोई नीलामी हो रही हो। यह न सिर्फ राजनीति का एक सस्ता प्रदर्शन था, बल्कि एक मानवता की भी हार थी। मुआवजा देने की यह नुमाइश क्या यही बताती है कि नेताओं को परिजनों की दुर्दशा से कोई वास्ता नहीं है, बस कैमरे की चमक में खुद को महान दिखाने की कोशिश है?
दरअसल दतिया में भारी बारिश के कारण हुए एक दुखद हादसे में मरने वालों के परिजनों को मुख्यमंत्री मोहन यादव ने 28 लाख रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की। जूली वंशकार को 20 लाख 49 हजार रुपये और राखी वंशकार को 8 लाख 49 हजार रुपये का मुआवजा दिया गया। इस सरकारी सहायता राशि को पूर्व गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने व्यक्तिगत रूप से परिजनों को सौंपी।
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इस घटना पर विवाद तब शुरू हुआ जब कांग्रेस ने सवाल उठाया कि नरोत्तम मिश्रा, जो अब किसी सरकारी पद पर नहीं हैं, किस आधार पर यह मुआवजा बांट रहे थे। कांग्रेस का कहना था कि यह काम स्थानीय प्रशासन, जैसे कलेक्टर, द्वारा किया जाना चाहिए था, न कि किसी नेता द्वारा। इस घटनाक्रम ने न सिर्फ प्रशासनिक प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए, बल्कि यह भी दिखाया कि दुख की घड़ी में भी राजनीतिक लोकप्रियता के लिए ऐसे कदम उठाए जा सकते हैं।
कांग्रेस द्वारा उठाए गए कि, यदि नरोत्तम मिश्रा किसी सरकारी पद पर नहीं हैं, तो फिर मुआवजा देने की यह भूमिका क्यों? क्या कलेक्टर का काम सिर्फ तमाशा देखने का रह गया है? और जनता को इस ड्रामे के सामने लाकर खड़ा कर दिया गया, जैसे वे इस दुख में नहीं, बल्कि किसी ‘रियलिटी शो’ का हिस्सा हों।
ऐसे समय में, जबकि जरूरत थी संवेदना और सहानुभूति की, वहाँ नेताजी ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस मौके को भी भुनाने में कसर नहीं छोड़ी। शायद नेताओं को यह समझना चाहिए कि असली लोकप्रियता लोगों के दुख में उनके साथ खड़े होने से आती है, न कि मुआवजे की नीलामी से।