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Wednesday, November 13, 2024

इंटरनेट मीडिया को बढ़ावा भले ही भाजपा की देन हो, लेकिन मध्यप्रदेश के सांसदों को इंटरनेट सेवा में कोई रुची नहीं 

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भोपाल। जनता से सीधे जुड़ाव के लिए सियासत में इंटरनेट मीडिया को बढ़ावा भले ही भाजपा की देन हो, लेकिन मध्य प्रदेश में इसका प्रभाव कुछ हद तक अब भी फीका ही है। लोकसभा की प्रदेश में 29 (एक रिक्त) सीटों में से 27 भाजपा के पास हैं, लेकिन छह सांसद ऐसे हैं, जिनके टि्वटर अकाउंट तक वेरिफाइड नहीं हैं और जो हैंडल्स इनके नाम पर सक्रिय दिख रहे हैं, उनमें फॉलोअर्स की संख्या पांच हजार भी नहीं है। वहीं 21 सांसदों के वेरिफाइड हैंडल हैं, लेकिन इनमें भी एक लाख से ज्यादा फॉलोअर्स सिर्फ पांच सांसद के हैं। इनमें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद सिंह पटेल, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह और भोपाल सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर शामिल हैं, जबकि राज्यसभा सांसद में देखें तो केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे ज्यादा 40 लाख और धर्मेंद्र प्रधान के 14 लाख फॉलोअर हैं।

करीब चार साल पहले भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह ने भोपाल प्रवास के दौरा पार्टी नेताओं को इंटरनेट मीडिया पर सक्रिय होने को कहा था, वहीं अब प्रदेश प्रभारी पी. मुरलीधर राव भी सक्रियता के लिए अलख जगा रहे हैं। उन्होंने जनता और कार्यकर्ताओं से जुड़ाव बढ़ाने के लिए इंटरनेट मीडिया को लेकर कवायद शुरू की है। फिलहाल इसका असर कई सांसदों पर नहीं दिख रहा है। इंटरनेट मीडिया पर सक्रिय मौजूदगी से जनता अपने प्रतिनिधियों से सीधे संवाद कर सकती है। कोई मांग, शिकायत या समस्या की ओर ध्यान दिलाने के लिए जनप्रतिनिधि के आवास या कार्यालय तक दौड़ नहीं लगानी पड़ती। दूसरी ओर जनप्रतिनिधि भी जनता से जुड़े मसलों पर ध्यान देने के लिए अपने निजी स्टाफ के ही भरोसे रहने के बजाय खुद इंटरनेट मीडिया के माध्यम से रूबरू हो पाते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कई केंद्रीय मंत्रियों और प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक इंटरनेट मीडिया के माध्यम से लोगों से जुड़ाव रखते रहे हैं। मध्य प्रदेश के 28 में से 27 सांसद भाजपा से हैं, जबकि एकमात्र कांग्रेस सांसद छिंदवाड़ा से नकुल नाथ हैं। विधानसभा में दोनों पार्टियों के विधायकों का अनुपात लगभग बराबरी का है। एक संसदीय क्षेत्र में औसतन छह से सात विधानसभा सीटें आती हैं। ऐसे में समझा जा सकता है कि भाजपा सांसदों पर उन विधानसभा क्षेत्रों में भी जनता से जुड़ाव की जिम्मेदारी बढ़ जाती है, जहां भाजपा के विधायक नहीं हैं।

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