ग्वालियर। बाजार रात 8 बजे तक खुल रहे,रेस्टोरेंट 10 बजे तक हो गए। शापिंग माल और काम्प्लेक्स को भी खोल दिया गया है। बाजारों और शहर की सड़कों पर ट्रैफिक जमकर है। अनलाक के ताले खोल जिला सरकार ने तो मुंह ही मोड़ लिया। धारा-144 के आदेश में प्रतिबंध और प्रतिबंध से छूट के बाद जो पंक्तियां लिखी हैं| वह आदेश में ही सिमट कर रह गईं। कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ है,न केस खत्म हुए हैं। अनलाक होने के बाद बाजारों में ऐसी बेपरवाही मुश्किल खड़ी कर सकती है। इंसीडेंट कमांडर और पुलिस प्रशासन बाजारों में भीड़ नियंत्रण भूल गया है, लोगों को रोका-टोका तक नहीं जा रहा है। कोरोना गाइडलाइन का पालन अभी भी जरूरी है, क्योंकि दूसरी जगहों पर अनलाक के बाद भी संक्रमण फैलने की स्थिति सामने आ चुकी है। वैक्सीनेशन भी अभी आधी आबादी को लगा है,सावधानी जरूरी है।
शहर की व्यवस्थाओं का भ्रमण कब शुरू होगाः कोरोना संक्रमण सिमट गया है,अब अनलाक हो चुका है। संभाग के मुखिया और पुलिस के जनरल साहब के नेतृत्व में जिले के अफसरों का ट्रैफिक और व्यवस्थाओं का निरीक्षण इंतजार में है। हर सप्ताह वह निरीक्षण होता था, जिससे कुछ हद तक व्यवस्था कुछ समय के लिए कस जाती थी। कोरोना संक्रमण के कारण सब कुछ बंद था, लेकिन अब सब खुल गया है तो साहब लोग यहां भी देखें। शहर के प्रमुख बाजारों से लेकर ट्रैफिक प्रबंधन के सुधार की जरूरत है। ग्वालियर में ट्रैफिक को नई राह देने के लिए एलिवेटेड रोड प्रस्तावित है, लेकिन वह अभी दूर की कौड़ी है। शहर के ट्रैफिक को लगातार निगरानी की जरूरत है। पुलिस ने तो प्रबंधन एक तरफ उठाकर रख दिया है इसलिए अब शहर के अफसरों को दोबारा एक साथ निकलने की जरूरत है। समस्याओं के हर ओर ढ़ेर लगे हैं।
किस किसने बेच दिया राशनः जिले में प्रधानमंत्री गरीब अन्न कल्याण योजना का राशन बेच दिया गया। दो खाद्य अफसरों पर एफआइआर दर्ज कराई जा चुकी है। इन्होने कोरोना की पहली लहर में केंद्र से आए राशन को दुकानदारों से सांठगांठ कर बेच दिया, जबकि हिसाब देना था,अफसरों से पूछना था। एक महिला अफसर और एक पुरुष अफसर ने यह किया है। अब यहां सवाल यह कि इतने बड़े पैमाने पर तमाम दुकानों से योजना का बचा राशन ठिकाने लगा दिया गया और किसी को भनक नहीं लगी। अगर दुकानदार कलेक्ट्रेट में आकर शिकायत नहीं करते तो क्या माजरा पता ही नहीं चलता। डबरा के दुकानदारों ने तो कम कोटा मिलने पर आकर आपत्ति दर्ज करा दी लेकिन पूरे शहर में ऐसा खेल हो गया हो तो, ऐसा संभव भी है। इसलिए जिला सरकार का ज्यादा भरोसे में रहना ठीक नहीं है। राशन का मसला है,जांच में देरी न हो।
लाख रुपये की मदद कब आएगीः कोरोना काल की दूसरी लहर में अपनों को खोने वाले सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। कारण है एक लाख रुपये कोरोना से जान गंवाने वाले को देने की घोषणा प्रदेश के मुखिया कर चुके हैं। न कोई नियम जारी हुए हैं न कोई गाइडलाइन मिली है। जिले की कलेक्ट्रेट से लेकर नगर सरकार के दफ्तर और माननीयों के कार्यालयों में लोग भटक रहे हैं। कोरोना काल में ऐसे भी लोग ढेर हैं, जिनके परिवार के परिवार चले गए। घर में रोजी रोटी को बचे सदस्य तरस गए हैं। कलेक्ट्रेट में बैठे हर अफसर के यहां गुहार आ रही हैं, लेकिन किसी के पास जवाब नहीं है। मदद मांगने वालों की कोई गलती नहीं है इसलिए वे तो आएंगे। अब जिला सरकार हो या नगर सरकार उनको व्यवस्था ऐसी तो बनानी होगी कि लोग परेशान न हों। अधिकृत सूचना देने का सिस्टम हो।