भोपाल। ग्वालियर-चंबल अंचल में राजनीतिक समीकरण बदलने के संकेत मिलने लगे हैं। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया के बीच बढ़ती नजदीकियां क्षेत्रीय राजनीति में नए समीकरण की ओर इशारा कर रही हैं। जयभान सिंह, जो अब तक सिंधिया घराने के खिलाफ मुखर रहे हैं, उनका यह बदला रुख विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच चल रहे सियासी खींचतान के बीच महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह घटनाक्रम भाजपा के संगठनात्मक चुनावों के दौरान हो रहा है, जो इसे और भी दिलचस्प बनाता है।
जिलाध्यक्ष पद के लिए होड़
भाजपा के जिलाध्यक्ष पद को लेकर चल रही दौड़ में नरेंद्र सिंह समर्थक रामेश्वर भदौरिया और ज्योतिरादित्य समर्थक शैलेंद्र बरुआ आमने-सामने हैं। अगर जयभान सिंह पवैया का समर्थन शैलेंद्र बरुआ को मिलता है, तो उनकी स्थिति मजबूत हो सकती है।
विजयपुर उपचुनाव और बदलते समीकरण
विजयपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में नरेंद्र सिंह समर्थक रामनिवास रावत की हार के बाद ग्वालियर-चंबल में समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। हिंदूवादी नेता के तौर पर पहचाने जाने वाले जयभान सिंह पवैया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीबी माने जाते हैं और गुटीय राजनीति से दूर रहकर निर्विवाद भूमिका निभाते रहे हैं। अब उनकी सिंधिया से नजदीकियां केंद्रीय नेतृत्व के संकेतों का नतीजा मानी जा रही हैं।
राजनीतिक दुश्मनी से दोस्ती तक का सफर
सिंधिया राजघराने के विरोधी के रूप में पहचान रखने वाले जयभान सिंह दो चुनावों में सिंधिया परिवार के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। हालांकि, उनके हमले केवल सैद्धांतिक मुद्दों तक सीमित रहे। व्यक्तिगत स्तर पर दोनों के बीच शोक संवेदनाओं तक का ही रिश्ता रहा।
जिलाध्यक्ष पद से होगा शक्ति प्रदर्शन
ग्वालियर के जिलाध्यक्ष पद पर नियुक्ति से अंचल की राजनीति में वर्चस्व तय होगा। जयभान सिंह अगर शैलेंद्र बरुआ के नाम पर सहमति देते हैं, तो सिंधिया गुट का पलड़ा भारी हो जाएगा। दूसरी ओर, रामेश्वर भदौरिया को सांसद भारत सिंह कुशवाह और विवेक शेजवलकर का समर्थन प्राप्त है।
संगठन मंत्रियों का विरोध और जिलाध्यक्ष पद की रेस
भाजपा संगठन में संभागीय मंत्रियों को निगम-मंडल में मंत्री दर्जा दिए जाने के बाद कुछ नेता जिलाध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल हो गए हैं। इनमें इंदौर में जयपाल सिंह चावड़ा, दतिया में आशुतोष तिवारी, भिंड में केशव भदौरिया, और ग्वालियर में शैलेंद्र बरुआ जैसे नाम प्रमुख हैं। हालांकि, पार्टी के भीतर इसका विरोध भी हो रहा है।
ग्वालियर-चंबल की बदलती सियासी तस्वीर आने वाले समय में भाजपा की राजनीति और शक्ति संतुलन को नया आकार दे सकती है।