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Wednesday, November 20, 2024

जानिए ब्लैक और व्हाइट फंगस के लक्षण और उससे जुडी बाते

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कोविड और फंगस संक्रमणः पिछले एक साल से हमारा देश कोरोना वायरस से लड़ रहा है और इस वर्ष फंगस  भी इसमें शामिल हो गया है और आम लोगों की मुश्किलें इसने ज्यादा बढ़ा दी है. ब्लैक एंड वाइट फंगस आजकल हर जगह खबरों की सुर्ख़ियों में छाया है और हम सभी लोग इससे डरे हुए हैं. इस फंगस के बारे में हमारे मन में कई सवाल उठते हैं. इनमें से कुछ के उत्तर हम नीचे दे रहे हैं.

ब्लैक फंगस और वाइट फंगस क्या है?
म्यूकोरमायकोसिस या ब्लैक फंगस का संक्रमण एक फंगस से होता है जो संक्रमित कोशिका समूहों में काले रंग का धब्बा बनाता है. कैंडिडा या वाइट फंगस संक्रमण एक ऐसे फंगस से होता है जो संक्रमित कोशिका समूहों में उजला धब्बा बनाता है.

यह संक्रमण कैसे फैलता है?
यह संक्रमण हवा में मौजूद फंगस के बीजाणुओं के सांस के द्वारा या अंतर्ग्रहण से शरीर के अंदर पहुंचने से होता है. कई बार यह शरीर के त्वचा पर हुए घाव या किसी मानसिक आघात के कारण भी शरीर में पहुंचता है.

यह कहां से आता है?
अन्य माइक्रोब्ज़ जैसे बैक्टीरीया या वायरस की तरह फंगस भी वातावरण में मौजूद होता है. यह आमतौर पर ज़मीन, हवा और मनुष्य के नाक और उसके बलगम में मौजूद होता है.

क्या यह हवा से फैलता है?
हां, चूंकी उसके बीजाणु हवा में मौजूद होते हैं इसलिए इसको फैलने से रोकना असंभव-सा है.

क्या फंगस लोगों से लोगों में फैलता है?
नहीं, फंगस से होनेवाला संक्रमण संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से नहीं होता.

क्या यह संक्रमण हम सभी को हो सकता है?
नहीं, चूंकी माइक्रोब्ज़ जैसे बैक्टीरीया, वायरस या फंगस हवा में मौजूद होते हैं, इसलिए इन्हें हम अपने शरीर में जाने से नहीं रोक सकते. पर हर व्यक्ति इससे संक्रमित नहीं होता. यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम कितना ज़्यादा सुरक्षित हैं, मतलब हमरा इम्यून सिस्टम कितना ज़्यादा मज़बूत है कि वह फंगस को हमारे शरीर में फैलने से रोक सके. स्वस्थ शरीर माइक्रोब्ज़ के शरीर में पहुंचते ही उससे लड़ाई शुरू कर देता है और उसको शरीर में आगे नहीं बढ़ने देता. इस तरह अगर किसी व्यक्ति का इम्यून सिस्टम मज़बूत है तो उसे यह संक्रमण नहीं होगा.

किसको हो सकता है संक्रमण?
जिस व्यक्ति के शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर है उसको संक्रमण का खतरा है. ऐसे लोग जो 60 साल के ऊपर के हैं, या जिनको डायबिटीज़ की गंभीर शिकायत है जो कि नियंत्रण में नहीं आ रहा, गुर्दे की बीमारी है, लीवर की बीमारी है, COPD, दमा, टीबी है या जो लोग इम्यून सिस्टम को दबाने की थेरेपी जैसे स्टेरॉयड ले रहे हैं, जिनको कैंसर जैसी बीमारी है, या जिनको अंग प्रत्यारोपण हुआ है, जो काफी समय से एंटीबायोटिक ले रहे हैं, काफी समय से अस्पताल में हैं, शरीर में पोषण की कमी है, तम्बाकू का सेवन करते हैं, बीड़ी-सिगरेट पीते हैं या शराब पीते हैं, ऐसे लोग इससे संक्रमित हो सकते हैं.

क्या कोविड से ग्रस्त हर मरीज ब्लैक एंड वाइट फंगस से संक्रमित हो सकता है?
नहीं, ब्लैक एंड वाइट फंगस एक बहुत ही दुर्लभ संक्रमण है और कोविड से ग्रस्त सभी मरीज़ों को यह नहीं होता.

कोविड मरीज़ों में यह संक्रमण तेज़ी से क्यों फैल रहा है?
-कोविड के कारण लोगों के शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है इसलिए बैक्टीरीया और फंगस को उनके शरीर में पहुंचने का मौका मिल जाता है. कोविड के इलाज में स्टेरॉयड जैसी दवाओं के प्रयोग के कारण शरीर में लिंफोसाइट्स की संख्या कम हो जाती है जो कि एक तरह की उजली रक्त कोशिका होती है जो बैक्टीरीया, वायरस और फंगस के खिलफ हमारे शरीर की रक्षा करती है. ये दवाएं मरीज़ के इम्यून सिस्टम को स्ट्रॉन्ग बनाती हैं जिसकी वजह से उनकी जान बच जाती है. लिंफोसाइट्स की संख्या में कमी आने से कोविड से ग्रस्त मरीज़ों में मौका देखकर फंगल संक्रमण बढ़ जाता है. जिस मरीज का इम्यून सिस्टम ठीक से काम नहीं कर रहा है उसको म्यूकोरमयकोसिस और कैंडिडा दोनों ही संक्रमण हो सकता है.

-एंटीबायोटिक दवाएं जिनका प्रयोग बैक्टीरीया के द्वितीयक संक्रमण को रोकने के लिए होता है, यह उस लाभदायक बैक्टीरीया के विकास को भी रोक देता है जो फंगस से हमारे शरीर को बचा सकता है.

-ज़िंक का ज़रूरत से अधिक प्रयोग भी इसका कारण हो सकता है क्योंकि यह फंगल संक्रमण को बढ़ाने का काम करता है.

-शरीर में औद्योगिक ऑक्सिजन का लंबे समय तक प्रयोग भी इसका कारण हो सकता है.

-भाप के प्रयोग से मुंह और नाक में फंगस के विकास के लिए अनुकूल वातावरण तैयार होता है.

क्या इन दवाओं को रोक देना चाहिए?
नहीं, ये दवाएं कोविड से जान बचाने के लिए जरूरी हैं.

इन दवाओं को लेते हुए फंगस के संक्रमण को कैसे रोक सकते हैं?
दवाएं सिर्फ आरएमपी डॉक्टर की सलाह और कड़ी निगरानी में ही लेनी चाहिए. आरएमपी डॉक्टर इस बात को जानता है कि मरीज को कौन सी दवा कब और कितनी मात्रा में देनी चाहिए और कितनी बार देनी चाहिए. अगर मरीज़ खुद इन दवाओं को लेता है या किसी की सलाह से और अगर इसका दुरुपयोग होता है तो वह मरीज़ संक्रमित हो सकता है और उसे दूसरी मुश्किलें भी हो सकती हैं.

क्या काढ़ा जैसी कोई प्राकृतिक वस्तुएं भी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं?
कोई भी वस्तु अगर ज़रूरत से ज़्यादा मात्रा में ली जाती है तो उससे नुकसान होता है. काढ़ा में भी बैक्टीरीया को मारने और स्टेरॉयड गुणों वाली वस्तुएं मिली होती हैं. इसलिए अंग्रेज़ी दवाओं के साथ ये भी नुकसान पहुंचा सकते हैं. ऐसी कई प्राकृतिक वस्तुओं में जिंक और आयरन की बहुतायत होती है जो फंगस के विकास को बढ़ाते हैं.

क्या कोविड के बिना भी यह संक्रमण हो सकता है?
हां. यह संक्रमण किसी भी व्यक्ति को हो सकता है जिसके शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर है भले ही उसे कोविड हुआ हो या नहीं.

क्या ब्लैक फंगस संक्रमण जानलेवा है?
हां, म्यूकोरमाइकोसिस या ब्लैक फंगस एक विरल लेकिन जानलेवा बीमारी है.

ब्लैक फंगस की बीमारी के क्या लक्षण हैं?
इसने शरीर के किस क्षेत्र को प्रभावित किया है इस आधार पर इसके निशान और लक्षण अलग अलग होते हैं.

राइनो ओर्बिटल सेरिब्रल म्यूकोरमाइकोसिस
यह संक्रमण उस समय होता है जब व्यक्ति फंगस के जीवाणुओं को सांस के माध्यम से शरीर के अंदर कर लेता है. यह नाक, आंख के घेरे/आंख के गड्ढे, ओरल कैविटी और यहां तक कि दिमाग को भी संक्रमित कर देता है. संक्रमण के कारण सिर दर्द, नाक का जाम होना, नाक बहना (हरे रंग का कफ आना), साइनस में दर्द, नाक से खून निकलना, चहरे पर सूजन, चहरे पर कुछ भी महसूस नहीं होना और त्वचा का रंग बदलना शामिल है.

पल्मनेरी म्यूकोरमाइकोसिस
यह तब होता है जब इस फंगस के जीवाणुओं को सांस के सहारे अंदर ले लिया गया है और वह श्वसन प्रणाली में पहुंच गया है. यह फेफड़े को संक्रमित करता है. इसके कारण बुखार आ सकता है, छाती में दर्द हो सकता है, कफ हो सकता है और कफ में खून निकल सकता है. यह फ़ंगस आंत, त्वचा और दूसरे अंगों को भी संक्रमित कर सकता है. पर इनमें सबसे ज़्यादा आम है राइनो सेरेब्रल म्यूकोरमाइकोसिस.

ब्लैक फंगस संक्रमण हो गया है, यह कैसे पता चलता है?
क्लीनिकल लक्षणों से इसके बारे में संदेह पैदा होता है और बाद में एमआरआई जैसी जांच भी की जाती है. इस संक्रमण की पुख़्ता जानकारी के लिए मरीज़ की बायोप्सी करनी होती है. इसमें मरीज़ के शरीर से टिशू का एक हिस्सा काटा जाता है और इसको माइक्रोस्कोप में देखा जाता है ताकि ब्लैक फंगस का इसमें पता लगाया जा सके.

क्या इसका इलाज है?
हां, अगर इसका पता जल्दी चल जाए तो इसका इलाज है और अमफोटेरिसिन और पोसैकोनाजोल जैसी एंटी-फंगल दवा का प्रयोग किया जाता है. कुछ मरीज़ों में सर्जरी करने की भी नौबत आती है जिसके प्रभावित क्षेत्र को निकाल दिया जाता है.

क्या वाइट फंगस का संक्रमण जानलेवा है?
नहीं, कैंडीडीएसिस या वाइट फंगस जानलेवा नहीं है.

क्या वाइट फंगस के संक्रमण का इलाज है?
हाँ, कैंडीडीएसिस या वाइट फगस का इलाज है और इसके लिए उपलब्ध दवाएं महंगी भी नहीं होतीं.

इससे अपना बचाव कैसे करें?
-साफ मास्क पहनें. यह इससे सबसे ज़्यादा प्रभावी बचाव है क्योंकि इससे आप फंगस को अपने शरीर में नाक और मुंह के रास्ते जाने से रोक पाएंगे. अपने मास्क को बार-बार साफ करें और उन्हें बदलें.
-अपने घाव, चमड़े के कट जाने या छिल जाने की जगह को तत्काल पानी से साफ करें.
-कोविड का इलाज किसी RMP डॉक्टर से ही लें. खुद कोई दवा न लें. नीम हकीम के चक्कर में न पड़ें. लंबे समय तक भाप न लें और न ही लंबे समय तक काढ़ा पिएं.

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