जबलपुर। मध्य प्रदेश के पुलिस थानों में धार्मिक स्थलों खासकर मंदिरों के निर्माण को लेकर एक नया विवाद सामने आया है। जबलपुर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार और पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह विवाद पुलिस थानों के परिसर में मंदिरों के निर्माण को लेकर है, जिसे सुप्रीम कोर्ट के 2003 में दिए गए एक आदेश का उल्लंघन बताया जा रहा है।
क्या है मामला…?
यह मामला एक जनहित याचिका से जुड़ा हुआ है, जिसे एडवोकेट सतीश वर्मा ने दायर किया था। याचिका में मध्य प्रदेश के विभिन्न पुलिस थानों जैसे कि माढ़ोताल, सिविल लाइन, मदन महल, विजय नगर और लॉर्डगंज थानों में धार्मिक स्थल (मंदिर) निर्माण पर आपत्ति जताई गई है। याचिकाकर्ता ने यह दावा किया कि ये मंदिर शासकीय भूमि पर बनाए गए हैं, जो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के खिलाफ हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में एक अहम निर्देश जारी किया था, जिसमें सार्वजनिक स्थानों या शासकीय भूमि पर धार्मिक स्थलों के निर्माण पर रोक लगाई गई थी। याचिका में कहा गया कि पुलिस थानों के परिसर में मंदिरों का निर्माण सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का उल्लंघन करता है।
हाईकोर्ट की प्रतिक्रिया और नोटिस…
हाईकोर्ट की मुख्य खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार और पुलिस विभाग के उच्च अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। इन अधिकारियों में राज्य के डीजीपी, गृह विभाग के मुख्य सचिव, नगरीय प्रशासन विभाग के सचिव, प्रदेश के मुख्य सचिव, जबलपुर कलेक्टर और जिले के थाना प्रभारियों के नाम शामिल हैं। कोर्ट ने इन अधिकारियों से 19 नवंबर तक जवाब देने को कहा है। साथ ही थानों के परिसर में धार्मिक स्थल निर्माण पर रोक भी लगा दी गई है।
धार्मिक स्थल बनाने के कारण
मध्य प्रदेश के कई पुलिस थानों के परिसर में अक्सर भगवान हनुमान के मंदिर बनाए जाते हैं। यह परंपरा पुलिस कर्मियों के बीच आम है, क्योंकि भगवान हनुमान को शक्ति और बुद्धि का देवता माना जाता है। पुलिस अधिकारी और कर्मचारी सुबह और शाम इन मंदिरों में पूजा करते हैं, ताकि वे अपने कार्य में सफलता और सुरक्षा प्राप्त कर सकें।
हिंदू धर्म में हनुमानजी की पूजा विशेष रूप से बल, साहस और बुद्धिमत्ता की प्राप्ति के लिए की जाती है और यह पुलिस कर्मियों के लिए शुभ माना जाता है। ऐसे में पुलिस थानों में इन मंदिरों का निर्माण एक तरह से कर्मियों की आस्था का हिस्सा बन चुका है। हालांकि, इस पर अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह धार्मिक गतिविधियाँ शासकीय भूमि पर ठीक हैं या नहीं।
एडवोकेट सतीश वर्मा का तर्क…
याचिकाकर्ता एडवोकेट सतीश वर्मा ने अदालत में कहा कि पुलिस थानों में मंदिरों का निर्माण सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है। 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने शासकीय भूमि पर धार्मिक स्थलों के निर्माण पर रोक लगाई थी और इसे लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। इसके साथ ही सतीश वर्मा ने यह भी कहा कि यह निर्माण पुलिस थानेदारों द्वारा किया जा रहा है, जो एक सरकारी अधिकारी हैं और इस प्रकार वे खुद ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर रहे हैं। याचिका में उन्होंने इस निर्माण को तत्काल रोकने की मांग की थी, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
सरकार और पुलिस विभाग पर दबाव…
अब, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और पुलिस विभाग से जवाब मांग लिया है। पुलिस थानों के परिसर में मंदिरों के निर्माण पर कोर्ट की रोक से यह सवाल भी उठता है कि क्या इस प्रकार के धार्मिक स्थल सरकारी संपत्ति पर बने रहने चाहिए या नहीं। कोर्ट का यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह केवल मध्य प्रदेश के पुलिस थानों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि अन्य राज्यों में भी इस पर विचार हो सकता है। यदि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया जाता है, तो अन्य सरकारी भवनों, जैसे स्कूलों, अस्पतालों और अन्य शासकीय कार्यालयों के परिसर में भी धार्मिक स्थलों के निर्माण पर सवाल उठ सकते हैं।
भविष्य में क्या हो सकता है…?
कोर्ट की आगामी सुनवाई 19 नवंबर को होगी और तब तक राज्य सरकार और संबंधित अधिकारी अपने पक्ष को स्पष्ट करेंगे। इस मामले का अंत किसी बड़े बदलाव की शुरुआत भी हो सकता है, जो भविष्य में सरकारी भूमि पर धार्मिक स्थलों के निर्माण से जुड़े नियमों को स्पष्ट कर सके।