भोपालः संस्कारित राजनीति का प्रतीक कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज 96वीं जयंती है. अटलजी की जन्मभूमि मध्य प्रदेश थी, जिससे उनका गहरा नाता था. 25 दिसंबर 1925 को जिस दिन पूरी दुनिया प्रभु यीशु का जन्मदिन मना रही थी, उसी दिन ग्वालियर के शिंदे की छावनी में कृष्ण बिहारी वाजपेयी और कृष्णा देवी के घर अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म हुआ था. पूरा देश आज उन्हें याद कर रहा है. इस अवसर पर हम भी कुछ कहानियों और किस्सों की मदद से ग्वालियर की उन गलियों में अटल जी को ढूंढने की कोशिश करते हैं, जहां उनका बचपन बीता. पूर्व प्रधानमंत्री की यादें आज भी ग्वालियर की गलियों में मौजूद हैं|
अटल बिहारी वाजपेयी का बचपन ग्वालियर में ही बीता था. यहां की गलियों में पले बढ़े एक लाल ने पूरी दुनिया में ग्वालियर नाम कर दिया. अपने तो अपने, विरोधी भी जिनके मुरीद रहे ऐसे अटल बिहारी वाजपेयी को पूरा ग्वालियर आज भी याद करता है. ग्वालियर का हर शख्स अटलजी के नाम से खुद को गौरवान्वित महसूस करता है. उन्होंने ग्वालियर के गोरखी स्कूल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा की शुरुआत की थी. आज भी इस स्कूल में अटल जी की यादें बसीं हैं. दीवारों पर बाकायदा अटलजी का नाम लिखा है, तो जिस कमरें में वह बैठते थे उसमें भी अटलजी की कई तस्वीरें लगी हैं. उन्होंने इसी स्कूल से मिडिल तक की शिक्षा हासिल की थी|
अटल बिहारी वाजपेयी जिस गोरखी स्कूल में पढ़ा करते थे उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी भी इसी स्कूल में पढ़ाया करते थे. स्कूल में आज भी उस रजिस्टर को सहेज कर रखा गया है, जिसमें कभी अटल जी की उपस्थिति दर्ज हुआ करती थी. उपस्थिति रजिस्टर में अटल जी का नंबर 100 फीसदी हुआ करता था. इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों और उनके अभिभावकों को नाज होता है कि यहां कभी अटल जी पढ़ा करते थे. गोरखी स्कूल के शिक्षक भी मानते हैं कि यह संस्थान अटल जी की यादों की धरोहर है|
अटल बिहारी वाजपेयी ने उच्च शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से पाई, जिसे अब महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज के नाम से जाना जाता है. लिखने.पढ़ने के शौकीन अटल बिहारी बाजपेयी बचपन से ही कवि सम्मेलनों में जाकर कविताएं सुनाते और नेताओं के भाषण सुनने में दिलचस्पी रखते थे. कॉलेज में होने वाले आयोजनों में जब अटलजी भाषण देते तो लोग उन्हें सुनते रह जाते. विक्टोरिया कॉलेज के भाषणों से उनकी पहचान बननी शुरू हुई. या यूं कहें कि यहीं से देश को एक शानदार वक्ता और ईमानदार नेता मिला|
अटल बिहारी वाजपेयी को कंचे खेलना बेहद पसंद था. शिंदे की छावनी में एक बगीचा हुआ करता था, जहां अटल जी अपने दोस्तों के साथ कंचे खेलते थे. अटल बिहारी वाजपेयी का बचपन से लेकर जवानी तक का सफर ग्वालियर शहर में ही बीता था. बाद में अटल बिहारी वाजपेयी जब देश की राजनीति में छाए तब भी उनका ग्वालियर से नाता कम नहीं हुआ. वह 1984 में यहीं से चुनाव भी लड़े थे|
हालांकि तब उन्हें माधवराव सिंधिया से हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन किसी की जीत से ज्यादा उनकी हार की चर्चा उस वक्त पूरे देश में हुई थी. क्योंकि अटल जी ने यह चुनाव केवल इसलिए लड़ा था, ताकि माधवराव सिंधिया और राजमाता विजयाराजे सिंधिया एक दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में न आ जाएं. अपनी हार पर अटल जी ने हंसते हुए कहा था, ’’जैसे मैंने सोचा था वैसा हो गया|
कम लोगों को ही इस बात की जानकारी होगी कि ग्वालियर में अटल बिहारी का वाजपेयी का एक मंदिर भी है, जहां रोज सुबह.शाम आरती भी होती है. हिंदी दिवस और अटल जी के जन्मदिन पर यहां विशेष आरती होती है. इस मंदिर को स्थापित करने वाले विजय सिंह चौहान बताते हैं कि अटल जी हिंदी माता के सच्चे सपूत थे. उन्होंने ही सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा में जाकर हिंदी में भाषण दिया और इसीलिए उनका मंदिर हिंदी माता के नजदीक बनाया गया है. आज भी कई लोग इस मंदिर में पहुंचते हैं जहां अटल जी की एक छोटी सी प्रतिमा लगी हुई है|
अटल बिहारी वाजपेयी पूरे भारत को अपना घर मानते थे. लेकिन जन्मभूमि होने की वजह से मध्य प्रदेश से उन्हें गहरा लगाव था. मालवा के पठारों से लेकर चंबल के बीहड़ों तक मध्य प्रदेश का ऐसा कोई शहर नहीं, जिसमें अटल जी की यादें न समाई हों. इसे मध्य प्रदेश की माटी से मिले मूल्य कहें या उनके खुद के संस्कार, लेकिन जिस वक्त छुट भैयों से लेकर सत्ता के शिखर तक पहुंच रखने वाले नेता भी खुद ही सब कुछ होने का गुमान पालते हों, उस वक्त में अटल बिहारी वाजपेयी जैसा कवि हृदय नेता ही कह सकता है |