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Sunday, March 2, 2025

मार्च में इस दिन से मांगलिक कार्यों पर लगेगी रोक, जानिए कब होंगे शुरू

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उज्जैन। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर पूर्णिमा तक होलाष्टक की मान्यता मानी जाती है। धार्मिक दृष्टिकोण से होलाष्टक के दौरान मांगलिक कार्यों को नहीं किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस बार 7 मार्च से होलाष्टक की शुरुआत होगी और 13 मार्च को होलिका दहन के साथ इसका समापन होगा।

हालांकि, 14 मार्च से सूर्य मीन राशि में प्रवेश करेंगे, जिसे मलमास माना जाता है। मलमास के दौरान भी शुभ मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं। इस कारण, इस बार सवा महीने तक कोई मांगलिक कार्य नहीं होंगे। 15 अप्रैल को मलमास के समाप्त होते ही विवाह, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो सकेंगे।

ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला के अनुसार, 7 मार्च को शुक्रवार को मृगशिरा नक्षत्र और वृषभ राशि के चंद्रमा के साथ होलाष्टक का आरंभ होगा, जो 13 मार्च तक जारी रहेगा। होलिका दहन के साथ 14 मार्च को इसका समापन हो जाएगा।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन से मांगलिक कार्यों की शुरुआत होनी थी, लेकिन इस बार 14 मार्च को होलाष्टक समाप्त होते ही सूर्य मीन राशि में प्रवेश करेंगे, जिसे मलमास कहा जाता है। मलमास में मांगलिक कार्यों की मनाही होती है, इसलिए 14 मार्च से लेकर 14 अप्रैल तक कोई मांगलिक कार्य नहीं किए जा सकेंगे। 15 अप्रैल से मलमास समाप्त होने के बाद फिर से ये कार्य हो सकेंगे।

अष्टक की आठ रातों का विशेष महत्व

धर्म शास्त्रों के अनुसार, तंत्र, मंत्र और यंत्र की सिद्धि के लिए रात्रि साधना का विशेष महत्व है। शास्त्रों में सिद्ध रात्रि, कालरात्रि और मोह रात्रि जैसी रातों को विशेष माना गया है। होली से पहले की होलाष्टक की आठ रातें भी इस साधना के लिए खास मानी जाती हैं। इन रातों में साधक यंत्र-मंत्र और तंत्र की सिद्धि के लिए विशिष्ट साधना करते हैं। होली की रात इस आठ दिवसीय साधना का प्रमुख दिन होता है और इस दिन साधना का क्रम पूर्ण होता है। होलिका दहन के बाद चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन होलाष्टक का समापन हो जाता है।

मध्य मालवा में होलाष्टक का कोई विघ्न नहीं

मध्य मालवा क्षेत्र में होलाष्टक को मांगलिक कार्यों में कोई बाधा नहीं माना जाता है। यहां परंपरा, पर्व और कुछ स्थानों पर लग्नसरा या गृह प्रवेश की स्थिति के अनुसार लोग इसे पालन करते हैं। इस विषय पर विद्वानों के बीच मतभेद हो सकते हैं, लेकिन ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार, मध्य मालवा में होलाष्टक की मान्यता नहीं है। फिर भी, होली जैसे त्योहार के कारण लोग लोकाचार के रूप में इसका पालन करते हैं। होलाष्टक की मान्यता विशेष रूप से महाराष्ट्र और कुछ दक्षिण और उत्तर के प्रांतों में अधिक है।

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