ग्वालियर। जीआर मेडिकल कालेज में छात्रों को मनुष्य की शारीरिक संरचना की पढ़ाई के आड़े डेड बाडी का टोटा आ रहा है। जीआरएमसी के एनाटामी विभाग को पिछले तीन साल से एक भी डेड बाडी दान में नहीं मिली है। विभागाध्यक्ष का कहना है कोविड से पहले उनके पास तीन डेड बाडी थीं, जिसमें से दो का प्रयोग हो चुका है। अब केवल एक बाडी बची है। काेविड के चलते पिछले डेढ़ साल से दान में डेड बाडी भी नहीं ले सके, क्योंकि संक्रमण का खतरा है। जबलपुर के सुभाष चंद्र बॉस मेडिकल कालेज के पास वर्तमान में 36 डेड बाडी रखी हुई हैं। वहां से मंगवाने के लिए जीआरएमसी के एनाटामी विभागाध्यक्ष डा. सुधीर सक्सेना कालेज के डीन डा. समीर गुप्ता से अनुरोध कर चुके हैं। अब संभागायुक्त से पत्राचार कर जबलपुर कालेज से डेड बाडी दिलाने की मांग की जाएगी। उनका कहना है मार्च 2020 में कोरोना ने शहर में दस्तक दी थी। इसके बाद लाकडाउन लग गया और लोग घर से नहीं निकले। जिनकी मौत हुई वह देहदान करने के लिए कालेज नहीं पहुंच सके। इधर शासन के निर्देश थे कि कोविड के दौरान कोई भी बाडी दान में न ली जाए, क्योंकि शव में वायरस का पता नहीं लगाया जा सकता था। वहीं अब लावारिस शव का पुलिस पोस्टमार्टम कराने लगी है, इसलिए वह एनाटामी के काम की नहीं रहती। जीआरएमसी में 180 छात्रों के लिए हर साल कम से कम 18 डेड बाडी की आवश्यकता होती है। कोविड में काफी छात्र आनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन जो भौतिक रूप से मौजूद हैं उन छात्रों लिए भी डेड बाडी उपलब्ध नहीं है।
वर्षाें से खराब पड़ा है रूम फ्रीजरः जीआरएमसी के निर्माण के साथ ही एनाटामी विभाग में एक रूम फ्रीजर डेड बाडी रखने के लिए तैयार किया गया था। इसमें जो मशीन लगी है वह मेड इन लंदन है। 30 साल पहले यह मशीन खराब हो गई, जिसे आज तक मेडिकल कालेज ठीक नहीं करा सका। नेशनल मेडिकल काउंसिल ने सभी मेडिकल कालेज के एनाटामी विभाग में एक रूम फ्रीजर अनिवार्य कर दिया, पर एनाटामी में बने रूम फ्रीजर को न तो सही कराया जा सका न ही नया रूम फ्रीजर बनवाया गया।