भोपाल | पुनर्गठन की दहलीज पर खड़ी मप्र की शिवराज कैबिनेट के कुछ सदस्यों के साथ अजीव संयोग(दुर्योग) जुड़ते जा रहे हैं। महिला व बाल विकास विभाग की मंत्री इमरती देवी ने विभाग के ‘मिथक’ की शिकार नजर आ रही हैं तो सरकारी बंगलों से जुड़ा ‘तिलिस्म’ भी सतह पर है, काबीना मंत्री (पूर्व) एंदल सिंह कंसाना ने भोपाल की श्यामला हिल्स में पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह के बंगले में प्रवेश किया और चुनाव हार गये।यह भी अजब है कि न एदल सिंह कुछ महीने पहले तक कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह के समर्थक माने जाते थे,फिर वे सिंधिया की तरफ ने झुके और शायद जानबूझकर दिग्विजय के पड़ोस वाला उनके पुत्र का बंगला ‘पसंद’ किया और हार बैठे।
मंत्री इमरती देवी “मिथक” की शिकार नज़र आ रहें है , जाने पूरा मामला
जानकार बताते हैं कि एदल सिंह कंसाना को जो श्यामला हिल्स का बी-3 बंगला आवंटित हुआ था, उसे उन्होंने अपने मुताबिक ठीक कराया और पैंतालीस बंगले के पुराने सरकारी निवास से यहां रहने पहुंचे।वे चुनाव लड़ने के बाद पूरे विश्वास में थे कि जीत उनकी होगी,लेकिनदस नवंबर को उनकी ‘अजब’ हार हुई।दरअसल उन्हें अजब सिंह ने हराया।ज्ञात हो यहां रह रहे पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह को चार इमली में एक डी टाइप बंगला दिया गया था।
उधर इमरती देवी के साथ भी अजब मिथक जुडगया है।महिला बाल विकास में जो भी मंत्री रहाम,उसका राजनीतिक कॅरियर बाद में डांवाडोल हो गया, खासतौर पर महिला मंत्रियों का। इमरती देवी महा उपचुनाव की ‘धुरी’ होने के बाद भी हार गईं। करोड़ों रूपयों की योजनाओं व गरीब बच्चों व माताओं के पेट भरने का बीड़ा उठाने वाले विभाग के मंत्री के हाथों में ‘यश’ क्यों नहीं इसकी महकमे के मुख्यालय ‘वात्सल्य भवन’ में खूब चर्चा है। …. अर्चना चिटनिस महिला व बाल विकास विभाग में मंत्री थीं,लेकिन 2018 में चुनाव हारने हार चुकी हैं |
शिवराज सरकार में के बाद अब यह राजनीतिक बियाबान में हैं।भाजपा के पंद्रह वर्ष के शासनकाल में इस महकमे का मिथक और पुख्ता हो गया है। चिटनिस से पहले रंजना बघेल भी यहीं मंत्री थीं लेकिन फिर मंत्री नहीं बन सकीं और चुनावी राजनीति में भी उनकी नैय्या हिचकोले खाती रही। बघेल से अलग हथ्र वरिष्ठतम भाजपा नेता कुसम महदेले का भी नहीं रहा है |
वे भी राजनीतिक बियाबान में हैं। यहाँ विभाग की राज्यमंत्री रहीं ललिता यादव भी पिछला चुनाव ही माया सिंह के पास भी ये विभाग रहा लेकिन दुर्भाग्य उनके साथ भी जुड़ा और भाजपा ने उनकी चुनावी संभावना कमजोर आंककर टिकट ही काट दिया। करीब सत्रह वर्ष पहले जब उमा भारती सरकार में ओमप्रकाश धुर्वे को यह महकमा मिला था,लेकिन यहां मंत्री रहने के बाद उनकी राजनीतिक नाव भी डांवाडोल हुई थी,कई वर्ष बाद बमुश्किल वे अन्य महकमे में मंत्री बन पाये थे।
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