भोपाल: प्रदेश की मोहन सरकार को 9 महीने हो गए हैं, लेकिन सरकार के भीतर किसकी चल रही है, यह अब तक एक बड़ा रहस्य बना हुआ है। नौ महीने पूरे कर चुकी इस सरकार में कई ऐसे मंत्री हैं, जो पहली बार कैबिनेट का हिस्सा बने हैं, तो कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें शिवराज सरकार में भी कद्दावर नेता माना जाता था। लेकिन इस बार मामला कुछ अलग है। कई प्रमुख मंत्रियों के प्रभार वाले जिलों और अन्य फैसलों से ये जाहिर हो रहा है कि कुछ मंत्रियों का राजनीतिक कद कम हुआ है और उनकी भूमिका सीमित कर दी गई है।
जातिगत संतुलन पर उठे सवाल
लेकिन इस सरकार में जातिगत संतुलन को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। खासतौर पर यादव समाज के लोगों को प्रमुख पदों पर नियुक्ति मिलने की बात चर्चा का विषय बन गई है। सूत्रों का कहना है कि, कई मंत्रियों और विधायकों ने इसे लेकर अपनी चिंता जताई है, हालांकि कोई भी इस मुद्दे पर खुलकर बात नहीं कर रहा है। लेकिन यह स्पष्ट है कि सरकार के विभिन्न विभागों और महत्वपूर्ण स्थानों पर यादव समाज के लोगों की संख्या बढ़ी है, जिससे बाकी समाज के नेताओं में असंतोष देखा जा रहा है।
संगठन भी कर रहा है असहज महसूस
यह असंतोष सिर्फ सरकार तक सीमित नहीं है, बल्कि भाजपा संगठन के भीतर भी कई नेताओं में नाराजगी है। संगठन के कई नेता भी खुद को मुख्यमंत्री के सामने बेबस महसूस कर रहे हैं। सरकार में जाति आधारित निर्णयों का आरोप और सीएम की यादव समाज के प्रति झुकाव की चर्चाएं धीरे-धीरे खुलकर सामने आने लगी हैं, जिससे पार्टी के भीतर तनाव बढ़ सकता है।
मंत्रियों की बेबसी और कामकाज पर असर
सरकार के भीतर कई मंत्री अपने कामों को लेकर खुद को बेबस महसूस कर रहे हैं। जनता से जुड़े काम नहीं हो पा रहे हैं, और बजट की कमी के कारण विभागों में कामकाज रुक सा गया है। कई विधायकों और मंत्रियों ने खुले तौर पर तो कुछ नहीं कहा, लेकिन उनके मन में ये सवाल जरूर है कि सरकार में वास्तविक फैसले कौन ले रहा है। मंत्रियों का कहना है कि वे जिम्मेदारी तो निभा रहे हैं, लेकिन उनके पास आवश्यक अधिकार और संसाधन नहीं हैं, जिससे वे जनता की उम्मीदों पर खरे उतर सकें।
प्रदेश में ये चिंता का कारण बन सकती है। जहां एक ओर विकास कार्यों के माध्यम से सरकार जनता का विश्वास जीतने का प्रयास कर रही है, वहीं जातिगत समीकरणों में असंतुलन सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।