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सरकारी अस्पतालों में प्रसव के दौरान मौतों का सिलसिला, 10 साल में 16 हजार से ज्यादा प्रसूताओं की मौत

 

भोपाल। मध्य प्रदेश में पिछले 10 सालों में सरकारी अस्पतालों में प्रसव के दौरान 16,757 माताओं की मौत हो चुकी है। इनमें से 98% मौतें यानी 16,499 सरकारी अस्पतालों में दर्ज की गई हैं। चिंताजनक बात यह है कि इनमें से 40% मौतें (6,608) उप स्वास्थ्य केंद्रों में हुईं, जहां किसी भी प्रकार का डॉक्टर उपलब्ध नहीं है। इन केंद्रों पर सभी चिकित्सा सेवाएं नर्सिंग स्टाफ के भरोसे हैं। इस कारण से मातृ मृत्यु दर में मध्य प्रदेश देश में तीसरे स्थान पर है, जहां प्रति एक लाख जन्मों पर 173 माताएं अपनी जान गंवा देती हैं। असम और उत्तर प्रदेश इस सूची में क्रमशः पहले और दूसरे स्थान पर हैं।

मृत्यु दर का वृद्धि-

सूचना के अधिकार के तहत जुटाई गई जानकारी के अनुसार सरकारी अस्पतालों में 2014-15 से 2018-19 के बीच 7,937 प्रसूताओं की मौत हुई, जबकि अगले पांच वर्षों में यह आंकड़ा बढ़कर 8,820 तक पहुंच गया है। यानी कि मौतों में 11% की वृद्धि दर्ज की गई है। अधिकांश उप स्वास्थ्य केंद्रों में स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ की अनुपस्थिति है और मशीनें होने के बावजूद ऑपरेटर नहीं हैं। सीजेरियन डिलीवरी की व्यवस्था केवल जिला अस्पतालों में उपलब्ध है।

स्थिति की गंभीरता-

आशंका जताई जा रही है कि ज्यादातर मौतें उन अस्पतालों में हुईं जहां स्थिति सही नहीं थी। छोटे सरकारी अस्पतालों में न तो पर्याप्त डॉक्टर हैं और न ही मशीनें। सीएचसी, उप स्वास्थ्य केंद्र और पीएचसी में सीजेरियन डिलीवरी की व्यवस्था ही नहीं है। जावरा, मंदसौर, नीमच, खरगोन, बुरहानपुर और धार जैसे जिलों में केवल सामान्य प्रसव ही संभव हैं।

मेडिकल कॉलेजों में अधिक मौतें-

मेडिकल कॉलेजों में भी मौतों की संख्या अधिक रही है, क्योंकि यहां पर मरीजों को अंतिम समय में रेफर किया जाता है, जब उनकी हालत गंभीर हो चुकी होती है। इसके अलावा, एंबुलेंस की देरी और बड़े अस्पतालों में भीड़ के कारण गर्भवतियों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता। वहीं, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार यदि प्रसव के दौरान मां की मौत हो जाती है तो 86% नवजात भी बच नहीं पाते। यदि मध्य प्रदेश में बीते 10 वर्षों के आंकड़ों को ध्यान में रखा जाए, तो 14,411 नवजातों की भी मौत हो चुकी है।

प्रसूताओं की मौत की प्रमुख वजहें-

अधिक रक्तस्राव: 38%
सेप्सिस: 11%
हाई ब्लड प्रेशर: 5%
अवरोधित प्रसव: 8%
गर्भपात: 34%

बड़े जिलों में मृत्यु दर अधिक देखी जा रही है। जबलपुर में 10 साल में 996 मौतें हुईं, जबकि भोपाल में 989 और इंदौर में 647 मौतें हुई हैं। डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला का गृह जिला रीवा चौथे स्थान पर है, जहां 467 मौतें दर्ज की गई हैं। निजी अस्पतालों में मौतों की संख्या कम रही है क्योंकि यहां पर गंभीर स्थिति में मरीजों को तुरंत रेफर कर दिया जाता है। सरकारी अस्पतालों की तुलना में निजी अस्पतालों में इलाज की व्यवस्था अधिक प्रभावी पाई जाती है। हालांकि, मध्य प्रदेश में सरकारी अस्पतालों की स्थिति में सुधार की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। 70 उप स्वास्थ्य केंद्रों की ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार, केवल 2 केंद्रों में प्रसव सुविधाएं उपलब्ध हैं।

नोट- ये रिपोर्ट दैनिक भास्कर के माध्यम से लगाई गई है, चूंकि भास्कर ने सूचना के अधिकार यानि आरटीआई का हवाला दिया है।

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