दमोह। दमोह जिले में महाकाली एक भव्य मंदिर स्थापित है। मंदिर में 1947 से ही महाकाली की प्रतिमा स्थापित की जा रही है। खास बात ये है कि नवरात्र के नौ दिनों में महाकाली की श्रृंगार सोने और चांदी के आभूषणों से किया जाता है। सुरक्षा के लिए मंदिर के बाहर 24 घंटे पुलिसकर्मी पहरा देते हैं महाकाली का श्रृंगार 12 तोले सोने और 10 किलो चांदी के आभूषणों से किया जाता है। इन आभूषणों में सोने का हार, लॉकेट, नथ, चूड़ी के अलावा चांदी का मुकुट, करधनी, पायल, छत्र और अन्य जेवर शामिल है। बताया जाता है कि 50 साल तक सर्राफा व्यापारियों ने प्रतिमा की स्थापना की बाद में उन्होंने बकोली चौराहे के पास अपनी अलग प्रतिमा की स्थापना करना शुरू कर दिया । जिसके बाद एक नई समिति का गठन किया गया, जिसका नाम सार्वजनिक महाकाली सेवा समिति रखा गया।
ज्ञानेश ताम्रकार (55 वर्षीय) ने बताया कि समिति के पास करीब 12 तोला सोना और 10 किलो चांदी है। सभी आभूषणों को बैंक के लॉकर में सुरक्षित रखा जाता है । जिस दिन प्रतिमा की स्थापना होती है , उससे एक दिन पहले ही लॉकर से गहनों को निकाला जाता है। पहले यहां पुलिस तैनात नहीं की जाती थी, लेकिन चोरी की घटनाओं को देखते हुए समिति के लोगों ने 2000 में मिलकर फैसला लिया कि गहनों की सुरक्षा के लिए 24 घंटे पुलिस तैनात रहनी चाहिए और तभी से यहां 24 घंटे चार पुलिस के जवानों की तैनाती होने लगी।
दशहरा के दिन जब महाकाली की प्रतिमा को विसर्जन के लिए फुटेरा तालाब लाते हैं, तभी पुलिस सुरक्षा के बीच आभूषणों को उतारा जाता है। इसके बाद पुलिस की सुरक्षा में ही गहनों को बैंक के लॉकर में सुरक्षित रखा जाता है। जिसके बाद से पुलिस का दायित्व समाप्त होता है।
महाकाली की प्रतिमा को गहने चढ़ाने का रिवाज आजादी के बाद से ही चला आ रहा है। महाकाली चौराहे के निवासी निर्गुण खरे (68) बताते हैं कि देश की आजादी के बाद 1947 में पहली बार यहां महाकाली की प्रतिमा स्थापित की गई थी, जिसे लक्ष्मीचंद असाटी, मूलचंद ताम्रकार और श्याम नारायण टंडन ने मिलकर रखा था। इस प्रतिमा की स्थापना सर्राफा व्यापारी मिलकर करते थे और उन्होंने ही प्रतिमा पर जेवरात चढ़ाने के रिवाज की शुरुआत की थी। पहले चांदी और कुछ सोना मां को चढ़ाया जाता था, लेकिन अब माता का पूरा श्रृंगार ही सोने और चांदी के जेवरात से किया जाता है।