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Wednesday, March 5, 2025

MP हाईकोर्ट ने EWS एज लिमिट केस पर सुनाया ऐतिहासिक फैसला

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जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की बेंच ने सोमवार को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को आयु सीमा में 5 साल की छूट दिए जाने की मांग पर सुनवाई पूरी कर ली। कोर्ट ने 20 याचिकाओं की संयुक्त सुनवाई करते हुए दोनों पक्षों की बहस के अहम बिंदुओं को अभिलेख में लिया और अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया।

20 याचिकाएं दायर की गईं थीं

सतना के आदित्य नारायण पांडे समेत 20 EWS अभ्यर्थियों ने याचिकाएं दायर की थीं। इन याचिकाओं में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल समेत अन्य ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पक्ष रखा। वहीं, आशुतोष चौबे, काशी प्रसाद शुक्ला, प्रदीप कुमार मिश्रा आदि की याचिकाओं में वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, रमेश प्रजापति और एस कौल ने पक्ष प्रस्तुत किया।

क्या दी गई दलीलें

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि जैसे पहले माध्यमिक और प्राथमिक शिक्षक भर्ती परीक्षा में EWS को 5 साल की आयु सीमा में छूट मिली थी, वैसे ही यूपीएससी की सिविल सर्विसेज परीक्षा-2025 के EWS अभ्यर्थियों को भी यह छूट मिलनी चाहिए। उनका तर्क था कि EWS को भी SC, ST और OBC की तरह आयु सीमा में छूट का अधिकार मिलना चाहिए। उन्होंने कोर्ट से केंद्र सरकार को निर्देश देने की अपील की कि वह केंद्रीय भर्तियों में अन्य वर्गों की तरह EWS के लिए भी आयु सीमा में छूट का प्रविधान करे।

हाईकोर्ट ने दी थी अंतरिम राहत

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने इस मामले में प्रारंभिक सुनवाई के दौरान EWS को आयु सीमा में पांच साल की छूट की अंतरिम राहत दी थी। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि यह छूट विचाराधीन याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन होगी और परिणामों की घोषणा बिना अनुमति के न की जाए। अब जबकि सुनवाई पूरी हो चुकी है और निर्णय सुरक्षित किया गया है, यह देखना दिलचस्प होगा कि कोर्ट EWS के पक्ष में अंतिम निर्णय सुनाता है या नहीं।

अंतरिम आदेश के बावजूद EWS को नहीं मिला लाभ

वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने कोर्ट को बताया कि हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश के बावजूद यूपीएससी ने सिविल सर्विसेज परीक्षा-2025 के EWS अभ्यर्थियों को आयु सीमा में छूट का लाभ नहीं दिया। इसके कारण कई उम्मीदवार फॉर्म जमा नहीं कर पाए।

EWS को 10 प्रतिशत आरक्षण

भारत सरकार ने 1991 में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने इंद्रा साहनी मामले में निरस्त कर दिया था। इसके बाद भारत सरकार ने 103वें संविधान संशोधन के तहत अनुच्छेद 15(6) और 16(6) जोड़े, जिससे EWS के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई।

EWS आरक्षण का मसला नीतिगत है

EWS आरक्षण के लिए 19 जनवरी, 2019 को डीओपीटी द्वारा गाइडलाइन जारी की गई थी, जिसमें आयु सीमा में छूट का कोई प्रविधान नहीं है। इस प्रकार, EWS आरक्षण का मामला नीतिगत है, जिसे उच्च न्यायालय की न्यायिक समीक्षा के तहत नहीं लाया जा सकता। सभी तर्क सुनने के बाद, हाईकोर्ट ने अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया।

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