MP News: शिवपुरी। भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष जसवंत जाटव एक बार फिर विवादों में हैं। इस बार वजह है उनके द्वारा अपने बेटे को संगठनात्मक पदों पर नियुक्त किया जाना। उनके इस कदम से भाजपा के भीतर ही परिवारवाद की नई बहस छिड़ गई है, तो विपक्ष ने इसे पार्टी के संविधान का खुला उल्लंघन बताया है।
बेटों को सौंपी अहम जिम्मेदारियाँ…
भाजपा जिलाध्यक्ष जसवंत जाटव ने अपने छोटे बेटे को करही मंडल का महामंत्री नियुक्त किया है, जबकि बड़े बेटे पुष्पेंद्र जाटव पहले से ही जनपद पंचायत के अध्यक्ष हैं। पुष्पेंद्र को यह पद निर्विरोध प्राप्त हुआ था। अब दोनों बेटों की प्रशासनिक और संगठनात्मक मौजूदगी ने पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष को जन्म दिया है।
2020 में भाजपा में हुए शामिल, फिर भी बने जिलाध्यक्ष
भाजपा के संविधान के मुताबिक, जिला अध्यक्ष बनाए जाने के लिए पार्टी की सक्रिय सदस्यता में कम से कम छह वर्ष का अनुभव आवश्यक है। जबकि जसवंत जाटव मार्च 2020 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। इसके बावजूद उन्हें जिलाध्यक्ष नियुक्त किया गया। बताया जाता है कि उन्हें यह पद ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी होने के कारण मिला।
सिंधिया समर्थकों को मिल रही तरजीह?
जसवंत जाटव उन 22 विधायकों में शामिल थे, जिन्होंने 2020 में सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ दी थी और भाजपा की सरकार बनवाने में भूमिका निभाई थी। वे चुनाव हार गए थे, फिर भी उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया। अब उन्हें जिला अध्यक्ष बनाए जाने और उनके परिवार को संगठन में प्रमुखता मिलने को सिंधिया खेमे की पकड़ के रूप में देखा जा रहा है।
भाजपा संविधान पर सवाल…
भाजपा के अनुच्छेद 25 (क) के अनुसार, जिला अध्यक्ष बनने के लिए 6 साल की सक्रिय सदस्यता अनिवार्य है। पार्टी के भीतर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह नियम केवल आम कार्यकर्ताओं के लिए है और नेताओं के करीबी इससे ऊपर हैं? वहीं, पार्टी के पुराने कार्यकर्ता भी असहज महसूस कर रहे हैं, क्योंकि कई वरिष्ठ नेता वर्षों से संगठन में सक्रिय रहने के बावजूद अभी तक पद की प्रतीक्षा में हैं।
कांग्रेस का हमला… भाजपा में अंदरूनी नाराज़गी…
पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता पीसी शर्मा ने कहा कि भाजपा में अब कोई संविधान नहीं है। यहां नेताओं के चहेतों के लिए पद सुरक्षित हैं। जो नेता करीबी है, वही जिला अध्यक्ष है, वही महामंत्री है। पार्टी संविधान को ताक पर रख दिया गया है। शिवपुरी जिले में भाजपा कार्यकर्ताओं के एक वर्ग में इस पूरे घटनाक्रम को लेकर नाराज़गी है। कुछ कार्यकर्ताओं ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि “स्थानीय कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर सिर्फ चुनिंदा परिवार को बढ़ावा देना संगठन के लिए नुकसानदायक हो सकता है।”
सवाल उठते रहेंगे…
भाजपा लगातार कांग्रेस पर परिवारवाद के आरोप लगाती रही है, लेकिन अब खुद के संगठन में ऐसी घटनाओं का सामने आना पार्टी की “आंतरिक नैतिकता” पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। क्या भाजपा वाकई परिवारवाद के विरोध में है या यह नारा केवल विपक्ष के लिए है?