भोपाल: राज्य सरकार का राजस्व अभियान 2.0 इन दिनों चर्चा में है, लेकिन सरकार के ही मंत्री इसकी वास्तविकता को लेकर असंतुष्ट नजर आ रहे हैं। प्रदेश सरकार के नए वन मंत्री रामनिवास रावत ने इस अभियान को ‘ढकोसला’ और ‘खानापूर्ति’ का जरिया करार दिया है, जिससे अभियान की सच्चाई पर सवाल उठ रहे हैं।
राजस्व अभियान 2.0 की शुरुआत 18 जुलाई को हुई थी और यह 31 अगस्त तक चलना है। अभियान का उद्देश्य राजस्व न्यायालयों में समय-सीमा पार प्रकरणों (जैसे नामांतरण, बटवारा, अभिलेख दुरुस्ती) का निराकरण, नये राजस्व प्रकरणों को आरसीएमएस पर दर्ज करना, नक्शे की तरमीम, पीएम किसान का सैचुरेशन, समग्र का आधार से ई-केवाईसी, और खसरे की समग्र आधार से लिकिंग करना है। इसके अलावा, किसानों की समस्याओं को सुलझाने के लिए विभागीय प्रयासों को और प्रभावी बनाने की कोशिश की जा रही है।
हालांकि, इस अभियान को लेकर मंत्री रावत की नाराजगी बढ़ती जा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि अभियान महज औपचारिकता बन कर रह गया है। उन्होंने कहा कि हाल ही में चुनावी सभा में भी इस अभियान को पूरी तरह से फेल करार दिया। उनका कहना है कि अभियान के दौरान कोई नियमित समीक्षा नहीं की जा रही है और न ही लापरवाही पर कोई कार्रवाई हो रही है। इसके परिणामस्वरूप, अभियान में प्रगति बहुत धीमी है।
मंत्री रावत ने इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से अपील की है कि पटवारियों की मॉनिटरिंग की जाए। उन्होंने कहा कि पटवारियों की निगरानी से जमीन के विवादों में कमी आएगी और किसानों को राहत मिलेगी। रावत ने यह भी आरोप लगाया कि पटवारी इस अभियान को लेकर गंभीर नहीं हैं और आमजन को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए मंत्रालय और मंत्री निवास तक चक्कर काटने को मजबूर होना पड़ रहा है।
इस बीच, अभियान के दौरान प्रशासनिक अमला अन्य कार्यक्रमों में व्यस्त रहा है, जैसे कि गुरुपूर्णिमा, पौधरोपण कार्यक्रम, और तिरंगा यात्रा। इसके कारण राजस्व अभियान की प्राथमिकता पर असर पड़ा है और इसके लिए आवश्यक संसाधन और ध्यान कम हो गया है।
राजस्व विभाग के अधिकारियों में भी अभियान को लेकर उत्साह की कमी नजर आ रही है। जिलों में भी सक्रियता की कमी बताई जा रही है। इससे स्पष्ट होता है कि राजस्व अभियान 2.0 को सफल बनाने के लिए आवश्यक संसाधन, निगरानी और नियमित समीक्षा की कमी है।
यदि सरकार इस अभियान की स्थिति को सुधारने के लिए ठोस कदम नहीं उठाती है, तो यह सवाल उठता है कि क्या यह अभियान भी पिछले अभियानों की तरह केवल औपचारिकता तक ही सीमित रह जाएगा।