भोपाल: मध्यप्रदेश का स्वराज संस्थान देश के स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों की गौरवगाथाओं को संजोने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। संस्थान ने प्रदेश के 1,000 से अधिक ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष को दस्तावेजों के रूप में संकलित किया है, जो अब तक अज्ञात थे। मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य है जिसने सभी जिलों के स्वतंत्रता सेनानियों पर शोध कर इस सामग्री को 41 खंडों में प्रकाशित किया है। इन किताबों को स्कूलों की पाठ्य पुस्तकों में शामिल करने का प्रस्ताव भी भेजा जाएगा। साथ ही, इन किताबों को ई-कॉमर्स प्लेटफार्म पर भी उपलब्ध कराया जाएगा।
इसके लिए लोककथाओं, समकालीन समाचार पत्रों, जेल के रिकॉर्ड, प्रशासनिक रिपोर्ट, ब्रिटिश दस्तावेज़ और अन्य स्रोतों का अध्ययन किया गया। संस्थान ने यह जानकारी जुटाने के लिए 2008 में फेलोशिप प्रोग्राम की शुरुआत की थी। अब तक “मप्र में स्वाधीनता संग्राम” शीर्षक से 15 किताबें प्रकाशित की जा चुकी हैं। इनमें सतना, सागर, रीवा, रतलाम, नीमच, मंदसौर, मंडला, खरगोन, उज्जैन, भोपाल, दतिया, छिंदवाड़ा, खंडवा, बुरहानपुर, डिंडोरी, शहडोल, उमरिया और अनूपपुर जिलों के स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियां शामिल हैं। इन किताबों का विमोचन 15 अगस्त को किया जाएगा।
स्वतंत्रता संग्राम में नायकों की आहुति
1824 में नरसिंहगढ़ की क्रांति: भोपाल रियासत के नबाब नजर मोहम्मद ने 26 फरवरी 1818 को अंग्रेजों से संधि कर सीहोर को अपने बेस कैंप के रूप में इस्तेमाल किया। 24 जुलाई 1824 को नरसिंहगढ़ के राजकुमार चेन सिंह ने सीहोर कैंप पर हमला किया, जिसमें अंग्रेजों का पॉलिटिकल एजेंट जेम्स मेंडॉक मारा गया, हालांकि चेन सिंह और उनके 42 साथी शहीद हो गए।
तात्या टोपे की सेना को रसद आपूर्ति: छक्कूलाल और अन्य स्थानीय लोगों ने तात्या टोपे की सेना को रसद और आवश्यक सुविधाएं प्रदान की। सीहोर में सिपाही बहादुर सरकार की स्थापना की गई, जो 8 अगस्त 1857 से जनवरी 1858 तक कायम रही। अंग्रेज अफसर ह्यूरोज ने 14 जनवरी 1858 को 356 क्रांतिकारियों को फांसी पर चढ़ाया।
विदिशा के छक्कूलाल सक्सेना की भूमिका: 1858 में, विदिशा के मरखेड़ा गांव के कानूनगो छक्कूलाल सक्सेना ने दिल्ली की ओर कूच कर रहे तात्या टोपे की 7,000 घुड़सवारों और 4,000 पैदल सैनिकों को न केवल रसद मुहैया कराई, बल्कि सेना के रुकने के इंतजाम किए।
अभी तक स्वतंत्रता संग्राम को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह जैसे शब्दों से वर्णित किया जाता था। स्वराज संस्थान ने 1857 के संग्राम को ‘क्रांति’ और ‘संघर्ष’ शब्दों से प्रस्तुत किया है, ताकि इसे स्वतंत्रता की लड़ाई के रूप में दर्शाया जा सके।
मप्र स्वराज संस्थान के डिप्टी डायरेक्टर संतोष कुमार वर्मा का कहना है कि, इन किताबों में प्रत्येक जिले के उन सेनानियों को शामिल किया गया है जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया। 41 खंडों में एक हजार से अधिक गुमनाम सेनानियों की कहानियां संकलित की गई हैं। इसके लिए गहन शोध और अध्ययन किया गया है।