इंदौर। प्रत्येक वर्ष माघ माह में पड़ने वाली षट्तिला एकादशी इस साल 25 जनवरी को मनाई जा रही है। मध्य प्रदेश के ग्वालियर के ज्योतिषाचार्य पं. रवि शर्मा के अनुसार, इस दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा विधिपूर्वक करते हैं और षट्तिला एकादशी का व्रत रखते हैं।
षटतिला एकादशी का व्रत और तिल का महत्व
इस दिन भक्त छह प्रकार से तिल का उपयोग करते हैं तिल से स्नान, तिल से तर्पण, तिल का दान, तिल युक्त भोजन, तिल से हवन और तिल मिश्रित जल का सेवन। यह व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और मोक्ष की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
पद्म पुराण के अनुसार, इस दिन तिल का भोग और भगवान विष्णु की पूजा विशेष महत्व रखती है। तिल का दान पापों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है। षटतिला एकादशी का व्रत रखने से घर में सुख-समृद्धि आती है और दरिद्रता एवं दुखों से मुक्ति मिलती है।
व्रत का महत्व और लाभ
जो लोग इस व्रत को नहीं कर सकते, वे केवल कथा सुनने से भी पुण्य प्राप्त कर सकते हैं, जो वाजपेय यज्ञ के बराबर माना जाता है। यह व्रत मानसिक, वाचिक और शारीरिक पापों से मुक्ति दिलाता है। इस व्रत का फल कन्यादान, हजारों सालों की तपस्या और यज्ञों के बराबर माना गया है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और गरीबों को जरूरी चीजें दान करते हैं।
षटतिला एकादशी व्रत पारण का समय
एकादशी तिथि 24 जनवरी शाम 7:25 बजे से शुरू हो चुकी है और 25 जनवरी रात 8:31 बजे समाप्त होगी। व्रत का पारण 26 जनवरी सुबह 7:12 बजे से लेकर 9:21 बजे तक किया जा सकता है।
षटतिला एकादशी व्रत रखने के तरीके
षटतिला एकादशी का व्रत दो प्रकार से किया जाता है – निर्जल व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत। निर्जल व्रत स्वस्थ व्यक्तियों के लिए उपयुक्त है, जबकि सामान्य लोग फलाहारी या जलीय उपवास रख सकते हैं। इस व्रत में तिल से स्नान, तिल युक्त उबटन और तिल मिश्रित जल और आहार का सेवन किया जाता है।
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