आज के समाज में डॉक्टर, इंजीनियर, वकील या शिक्षक बनने के लिए आवश्यक डिग्री और परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य है। यदि कोई डॉक्टर बनना चाहता है, तो उसे MBBS करना होगा, और यदि कोई वकील बनना चाहता है, तो उसे LLB की डिग्री प्राप्त करनी होगी। लेकिन, भारतीय राजनीति में प्रवेश करने या विधायक-सांसद बनने के लिए ऐसी कोई शैक्षिक योग्यता आवश्यक नहीं है। इस मुद्दे पर हाल ही में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए इसे “कानून की खामी या शुद्ध राजनीति” करार दिया है।
हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान इस बात पर चर्चा की कि विधायकों और सांसदों के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता निर्धारित न होना क्या संविधान की कमी है या राजनीति का हिस्सा। इस टिप्पणी ने देश में एक पुरानी बहस को फिर से जीवित कर दिया है, जिसमें यह सवाल उठता है कि क्या हमारे देश के विधायकों और सांसदों के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता होनी चाहिए।
संविधान सभा में हुई थी चर्चा
यह मुद्दा कोई नया नहीं है। लगभग 75 साल पहले जब भारतीय संविधान का निर्माण हो रहा था, तब संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने विधायकों और सांसदों के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता न तय होने पर खेद व्यक्त किया था। उस समय इस मुद्दे पर गहन चर्चा हुई थी, लेकिन इसे संविधान में शामिल नहीं किया गया।
सात दशकों में कोई बदलाव नहीं
देश की स्वतंत्रता के बाद से, भारत ने हर क्षेत्र में कई सुधार किए हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून और न्यायपालिका में बड़े बदलाव हुए हैं, लेकिन कानून बनाने वालों के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता तय करने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। यह मुद्दा बार-बार उठता रहा है, लेकिन अब तक इसे गंभीरता से नहीं लिया गया।
प्रशासन और राजनीति में अंतर
यह एक महत्वपूर्ण विरोधाभास है कि जहां कानून लागू करने वाले प्रशासकों को **UPSC** जैसी कठिन परीक्षाएं पास करनी होती हैं, वहीं कानून बनाने वालों के लिए कोई न्यूनतम शैक्षिक योग्यता निर्धारित नहीं है। क्या यह एक विसंगति है या समावेशी लोकतंत्र की जरूरत, इस पर विचार करना आवश्यक है।
समावेशी लोकतंत्र या जरूरतमंद सुधार
शैक्षिक योग्यता के मुद्दे पर बहस के दोनों पक्ष हैं। एक तरफ यह कहा जाता है कि लोकतंत्र में हर व्यक्ति को प्रतिनिधित्व करने का अधिकार होना चाहिए, चाहे उसकी शैक्षिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो। दूसरी तरफ, कानून बनाने की जटिल प्रक्रिया और समाज को दिशा देने वाली नीतियों को ध्यान में रखते हुए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता की मांग उठती रही है।
देश में इस मुद्दे पर बहस जारी है। हालांकि, अब यह देखना होगा कि भविष्य में विधायकों और सांसदों के लिए कोई शैक्षिक योग्यता निर्धारित की जाएगी या नहीं।