इंदौर। निमाड़ क्षेत्र के प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा का निधन हो गया। वे बुधवार (11 दिसंबर) सुबह 6:10 बजे इस दुनिया को अलविदा कह गए। सियाराम बाबा लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। उनका अंतिम संस्कार आज शाम 4 बजे भट्यान तट पर किया जाएगा। सियाराम बाबा का जन्म 1933 में गुजरात के भावनगर में हुआ था, और 17 वर्ष की आयु में उन्होंने आध्यात्मिक जीवन अपनाने का संकल्प लिया था।
सियाराम बाबा ने कई वर्षों तक अपने गुरु से शिक्षा प्राप्त की और कई तीर्थ स्थलों की यात्रा की। वे 1962 में भट्याण पहुंचे, जहां एक वृक्ष के नीचे उन्होंने मौन रहकर तपस्या की। उनकी तपस्या पूरी होने पर उन्होंने “सियाराम” का उच्चारण किया और तभी से वे सियाराम बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
हनुमान जी के भक्त
सियाराम बाबा खरगोन जिले के भट्याण आश्रम में स्थित नर्मदा नदी के घाट पर निवास करते थे। वे हनुमान जी के परम भक्त थे और नियमित रूप से रामचरितमानस का पाठ करते थे। कहा जाता है कि उन्होंने सातवीं कक्षा तक पढ़ाई की और बाद में संतों से संपर्क में आकर घर छोड़ दिया। इसके बाद वे हिमाचल में तपस्या करने के लिए गए।
दान और समाज सेवा
सियाराम बाबा दान में केवल 10 रुपये ही लेते थे। उन्होंने समाज के कल्याण के लिए कई कार्य किए, जिनमें नर्मदा नदी के घाट की मरम्मत के लिए 2 करोड़ 57 लाख रुपये का दान देना शामिल है।
साधना और जीवन शैली
सियाराम बाबा सर्दी हो या बारिश, हमेशा एक लंगोट पहनते थे। ध्यान की शक्ति से उन्होंने अपने शरीर को मौसम के अनुकूल बना लिया था। वे अपना सारा काम खुद करते थे और करीब 12 साल तक मौन व्रत में रहे।