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Friday, September 20, 2024

सरपंच पति का राज होगा खत्म!, सुप्रीम कोर्ट ने लिया सख्त एक्शन

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दिल्ली: देश की अधिकतर ग्राम पंचायतों में मुख्य रूप से सरपंच पति कामकाज की बागडोर संभाले हुए हैं।  कई पंचायत में महिला सरपंच हैं लेकिन यहां महिला सरपंच का नहीं बल्कि सरपंच पति का राज चलता है, सरपंच पति पंचायत के हर काम में शामिल रहता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया है.

इस कुप्रथा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका के बाद केंद्र सरकार ने सुधारात्मक कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। पंचायतीराज मंत्रालय ने इस मुद्दे पर एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है, जो 18 राज्यों में महिला प्रधानों की समस्याओं का अध्ययन कर रही है और सुधार के सुझाव दे रही है।

समिति का गठन और कार्य
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी सुशील कुमार की अध्यक्षता में गठित दस सदस्यीय विशेषज्ञ समिति ने पंचायत संस्थाओं की निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों की व्यावहारिक समस्याओं पर अध्ययन किया। समिति ने पाया कि कई महिलाओं को प्रतिनिधि के रूप में काम करने में अपने पति की सहायता पर निर्भर रहना पड़ता है।

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
सुप्रीम कोर्ट में पिछले साल दायर जनहित याचिका के बाद, जुलाई 2023 में कोर्ट ने पंचायतीराज मंत्रालय को निर्देश दिए थे। इसके परिणामस्वरूप, मंत्रालय ने सितंबर 2023 में समिति द्वारा प्रस्तुत किए गए सुझावों पर ध्यान देना शुरू किया है।

समिति के प्रमुख सुझाव:
1. सरपंच पति प्रथा का अंत: राज्यों के लिए एक आदर्श कानून का प्रारूप तैयार किया जाए ताकि सरपंच पति की प्रथा समाप्त की जा सके।
2. पंचायत सचिव पद पर आरक्षण: महिलाओं के लिए पंचायत सचिव पद पर 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की जा सकती है।
3. सुलभ मैन्युअल्स: सभी भाषाओं में मैन्युअल तैयार किए जाएं ताकि अशिक्षित महिलाएं भी उन्हें समझ सकें।
4. प्रशिक्षण की व्यवस्था: सफल महिला जनप्रतिनिधियों से प्रशिक्षण दिलाने के लिए स्कूल आफ प्रैक्टिस की स्थापना की जाए।

समिति के अध्ययन में यह भी सामने आया कि बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान में महिला सरपंचों को भ्रष्टाचार और अन्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन्हें अक्सर महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करने और निविदाओं को स्वीकृत करने में डर रहता है कि किसी गलती पर उन्हें जेल की सजा हो सकती है। इस स्थिति से निपटने के लिए महिला जनप्रतिनिधियों को अधिक सक्षम और आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता है।

देशभर की पंचायतों में निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों की भागीदारी बढ़कर 44 प्रतिशत हो गई है, जो महिला सशक्तीकरण के दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, “सरपंच पति” जैसी प्रथाएँ अब भी महिला प्रतिनिधियों की स्वतंत्रता और प्रभावशीलता में बाधा डाल रही हैं।

 

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