नई दिल्ली. कोरोना की वजह से होने वाले फेफड़ों के संक्रमण को रोकने में शुगर रोगियों द्वारा ली जाने वाली दवा मेटफॉर्मिन मदद करती है. दवा के लगातार सेवन से फेफड़ों का संक्रमण कम हो सकता है. हाल ही में हुए एक शोध के बाद यह दावा किया गया है. इस संबंध में डॉक्टरों का कहना है फिलहाल कोरोना में ऑक्सीजन और स्टेरॉयड ही दो प्रमुख उपचार हैं.
शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ने पर रोगियों को मेटफॉर्मिन दवा दी जाती है. यह शुगर के सामान्य मरीजों की दवा है, जो खून में शुगर की मात्रा कम करने की दवा है. यह टाइप 2 शुगर रोगियों के लिए शुरुआती दवा है, जिसके सेवन के साथ डाइट और लाइफ स्टाइल में परिवर्तन कर रोगियों को राहत मिल सकती है. इस दवा को लेकर हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन डिएगो (यूसीएसडी) स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने एक शोध किया है. इस संबंध में जर्नल इम्यूनिटी में रिपोर्ट ऑनलाइन प्रकाशित हुई है. कोरोना संक्रमित चूहों पर दवा का इस्तेमाल किया गया, जिन पर पल्मोनरी या फेफड़ों में सूजन थी, मेटफॉर्मिन दवा से इनमें फेफड़े के संक्रमण कम करने में मदद मिली है.
मेटफॉर्मिन से एआरडीएस में मिला आराम
शोधकर्ताओं ने एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) पर इस्तेमाल किया. इन स्थितियों में फेफड़ों में तरल पदार्थ का रिसाव होता है, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है और आवश्यक अंगों तक ऑक्सीजन कीआपूर्ति सीमित हो जाती है, जिससे कोरोना संक्रमित रोगी को परेशानी होती है. शोध के दौरान ऐसे लक्षण वाले चूहों को मेटफॉर्मिन दी गई, परिणाम स्वरूप एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम और उसके लक्षणों में कमी पाई गई है.
कोरोना के लिए आक्सीजन और स्टेरॉयड ही उपचार
हालांकि डॉक्टर इस बात से सहमत नहीं हैं. फोर्टिस अस्पताल दिल्ली के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. विद्युत प्रताप सिंह बताते हैं कि अभी कोरोना के लिए आक्सीजन और स्टेरॉयड उपचार हैं. इसके अलावा कई ऐसी दवाओं का इस्तेमाल भी किया जाता है जो किसी दूसरी बीमारी में इस्तेमाल होती हैं, लेकिन कोरोना मरीजों को भी राहत देती हैं. अस्पतालों में जो दवा इस्तेमाल होती हैं, वो लोगों को दी जाती है उसके प्रभाव और दुष्प्रभाव दिखते हैं लेकिन शोध के दौरान दवा जानवरों पर इस्तेमाल की जाती हैं, इंसानों पर क्या असर पड़ेगा, यह पता नहीं होता है. मेटफॉर्मिन शुगर रोगियों के लिए कारगर दवा है. वहीं स्वास्तिक मेडिकल सेंटर गाजियाबाद के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. राहुल गुप्ता भी मानते हैं कि शोध जानवरों पर किया गया है, यह इंसानों पर कितनी कारगर है, यह पता नहीं है. इसलिए केवल एक शोध के आधार दवा का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं.