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Tuesday, October 29, 2024

शाही सवारी पर संतो में शास्त्रार्थ: शंकराचार्य ने कहा- शब्द बदलने की जरूरत नहीं, उच्चारण सही कीजिए

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उज्जैन: महाकाल की भादौ की दूसरी सवारी के नाम पर संतों के बीच शास्त्रार्थ छिड़ गया है। शाही सवारी के नाम को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं, और शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने इस पर अपनी अलग राय व्यक्त की है। उनका कहना है कि यह “शाही सवारी” नहीं बल्कि “साहि सवारी” है, जिसका अर्थ है नाग और गंगा के संग महाकाल की यात्रा। उन्होंने बताया कि ‘स’ का अर्थ ‘सहित’ होता है, और ‘अहि’ का मतलब नाग या सर्प से है, यानी यह यात्रा महाकाल की होती है जिसमें वे नाग और गंगा के साथ निकलते हैं।

शंकराचार्य ने कहा कि शाही शब्द का सही उच्चारण “साहि” है और इसे बदलने की जरूरत नहीं है, बल्कि सही तरीके से उच्चारण करने की आवश्यकता है। अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा- यह शाही सवारी नहीं, साहि सवारि है जिसका अर्थ नाग और गंगा समेत निकलने वाली महाकाल की यात्रा है। ‘शब्द बदलने की जरूरत नहीं, उच्चारण सही कीजिए’
ज्योतिर्मठ शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि, कुछ लोग कह रहे हैं, शाही शब्द ठीक नहीं है। मेरा मानना है, मंदिर में उर्दू या फारसी कैसे प्रवेश कर गई। जिस भाषा का शाही शब्द है, उसी का सवारी।

शाही सवारी दोनों शब्द हटाकर नया नामकरण हो। पर अध्ययन के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यह किसी मुस्लिम का दिया नाम नहीं है। शाही सवारी का सही शब्द व उच्चारण साहि जिससे आशय स अहि सवारि है, साहि, यहां स का अर्थ सहित आखिरी सवारी का नाम बदल किया शाही सवारी या समेत से है, जबकि अहि नाग या सर्प को कहा जाता है यानी ऐसी यात्रा जिसमें बाबा महाकाल नाग या सर्प के समेत निकलते हैं।

इसी प्रकार स वारि = सवारि यानी स से सहित और वारि यानी गंगा, बाबा महाकाल प्रियतमा गंगा के साथ निकलते हैं। यानी ऐसी यात्रा, जिसमें महाकाल नाग व सिर से बहने वाली गंगा के साथ निकलते हैं, जिसे साहि सवारि कहते हैं। शब्द बदलने की जरूरत नहीं है, सही उच्चारण की जरूरत है।

वहीं, पं. आनंदशंकर व्यास का मानना है कि भादौ की दूसरी सवारी को अंतिम सवारी कहा जाता था, इसलिए इसे शाही सवारी का नाम दिया गया। उन्होंने कहा कि शाही शब्द यवन संस्कृति का हिस्सा है, और इसे बदलकर राजसी ठाठ-बाट से महाकाल की सवारी का वर्णन करना बेहतर होगा।

इस पर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने कहा कि “शाही सवारी” का तात्पर्य राजसी वैभव और ठाठ-बाट से है। उन्होंने शंकराचार्य की व्याख्या को गलत बताते हुए कहा कि शाही शब्द मुगलों की भाषा का हिस्सा है, और इसे हटाना ही उचित होगा। परिषद जल्द ही 13 अखाड़ों के प्रतिनिधियों से बातचीत कर नए नाम पर विचार करेगी।

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