भोपाल। चुनावी साल में राज्य सरकार हर वर्ग की चिंता कर रही है। जहां अस्थायी कर्मचारियों के लिए कैशलेस चिकित्सा सहित अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने पर मंथन चल रहा है, वहीं प्रदेश के 48 हजार से अधिक स्थायी कर्मचारियों की भी सुध ली जा रही है। यह वह कर्मचारी हैं जिन्हें कलेक्टर रेट पर पहले दैनिक वेतनभोगी के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में 2014 से 2016 के बीच इन्हें स्थायी कर्मचारी बनाया गया। अब सरकार इन कर्मचारियों को सातवां वेतनमान और इस संवर्ग में अनुकंपा नियुक्ति का प्रविधान करने पर गंभीरता से विचार कर रही है।
शासन के उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया कि सरकार ने इस बारे में विभाग प्रमुखों से विचार विमर्श शुरू कर दिया है। स्थायी कर्मचारी लंबे समय से खाली पदों पर नियमितीकरण की मांग कर रहे हैं। सरकार ने इसका तोड़ निकाल लिया है। राज्य कर्मचारी कल्याण समिति ने इन कर्मचारियों को सातवां वेतनमान और अनुकंपा नियुक्ति देने की अनुशंसा की है। उम्मीद की जा रही है कि नए वर्ष में इन कर्मचारियों को लाभ मिलने लगेगा।
20-25 साल से विभिन्न विभागों में सेवाएं दे रहे इन कर्मचारियों को वर्तमान में छठां वेतनमान भी नहीं मिल रहा है। वर्तमान में अकुशल स्थायीकर्मी को चार हजार, अर्द्धकुशल को साढ़े चार हजार और कुशल को पांच हजार रुपये वेतन दिया जा रहा है।
मप्र कर्मचारी मंच के अध्यक्ष अशोक पाण्डेय ने बताया कि उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार मामले में 10 अप्रैल 2006 को उच्चतम न्यायालय ने एक फैसला सुनाया है कि 10 साल की सेवा पूरी करने वाले कर्मचारियों को विभागों में रिक्त पदों पर नियुक्ति दी जाए। कर्मचारी रामनरेश रावत द्वारा लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के विरुद्ध लगाए गए एक अन्य मामले में न्यायालय ने रिक्त पदों पर नियुक्ति के आदेश दिए हैं, फिर भी इन कर्मियों पर निर्णय नहीं ले रही है।