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मध्य प्रदेश में कुपोषण में महत्वपूर्ण सुधार: मोहन सरकार को मिली राहत, 45 फीसदी तक आई गिरावट

 

भोपाल। मध्य प्रदेश में बच्चों में कुपोषण के मामलों में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है, जो कि पूरे देश के लिए एक सकारात्मक संकेत है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार 2005-06 से लेकर 2019-21 के बीच बच्चों में कुपोषण की स्थिति में महत्वपूर्ण कमी आई है। इस अवधि में कुपोषण की दर 45 प्रतिशत घट गई है, जिससे मध्य प्रदेश देश में इस क्षेत्र में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। यह रिपोर्ट प्रदेश सरकार की कुपोषण निवारण की योजनाओं की सफलता की पुष्टि करती है।

वर्ष 2005-06 में मध्य प्रदेश में 60 प्रतिशत बच्चे उम्र के अनुसार कम वजन वाले थे, जो 2020-21 में घटकर 33 प्रतिशत हो गया। इस अवधि में 45 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इसी प्रकार दुबलेपन की दर 35 प्रतिशत से घटकर 18.9 प्रतिशत हो गई, जो कि 45.9 प्रतिशत की गिरावट है। गंभीर दुबलेपन के मामले भी 12.6 प्रतिशत से घटकर 6.5 प्रतिशत पर आ गए हैं, यानी 48.7 प्रतिशत की कमी आई है।

मोहन सरकर की पहल

मध्य प्रदेश की मोहन सरकार ने कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में कई प्रभावशाली योजनाएं लागू की हैं। विशेष रूप से “अटल बिहारी वाजपेयी बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन” के तहत राज्य ने कुपोषण निवारण के लिए विभिन्न योजनाएं तैयार की हैं। इस मिशन का उद्देश्य 2047 तक सभी प्रकार के कुपोषण का पूरी तरह से उन्मूलन करना है।

पोषण ट्रैकर ऐप का योगदान

भारत सरकार द्वारा संचालित पोषण ट्रैकर ऐप ने भी मध्य प्रदेश में कुपोषण की स्थिति में सुधार को रेखांकित किया है। अप्रैल 2023 में राज्य में 30 प्रतिशत बच्चे कम वजन वाले थे, जो जुलाई 2024 तक घटकर 27 प्रतिशत रह गए हैं। इसी तरह दुबलापन की दर भी अप्रैल 2023 में 8 प्रतिशत थी, जो जुलाई 2024 में घटकर 7 प्रतिशत हो गई है। यह संकेत करता है कि राज्य सरकार की योजनाएं और पहल कारगर साबित हो रही हैं।

कुपोषण पर विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों का मानना है कि कुपोषण को समाप्त करने के लिए राज्य सरकार की योजनाओं और कार्यक्रमों का प्रभावी कार्यान्वयन एक प्रमुख कारण है। विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर काम करने से कुपोषण की समस्या पर नियंत्रण पाने में मदद मिली है। मध्य प्रदेश का यह सुधार अन्य राज्यों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत है और कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में एक सकारात्मक संकेत है। राज्य सरकार की दीर्घकालिक योजनाओं और निरंतर निगरानी से उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में कुपोषण की समस्या को पूरी तरह समाप्त किया जा सकेगा।

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