Home प्रदेश ग्वालियर उपचुनवा में लड़खड़ाता कोंग्रस,स्टार प्रचारकों के मामले में भी रहें मायूस

उपचुनवा में लड़खड़ाता कोंग्रस,स्टार प्रचारकों के मामले में भी रहें मायूस

Congress

ग्वालियर |उपचुनाव के दौरान ग्वालियर विधानसभा में कांग्रेस की डांवाडोल स्थिति को लेकर अब राजनीतिक विश्लेषणों में दो बातें मोटे तौर पर निकलकर सामने आ रही हैं। इनमें से एक है कहीं पार्टी नेताओं की निष्क्रियता तो कहीं संगठन के मैदानी कार्यकर्ताओं का पूरे चुनाव में लापता बने रहना। इन्हीं कारणों से कांग्रेस का चुनाव प्रबंधन शुरुआत से आखिर तक लड़खड़ाता रहा। वहीं दूसरी ओर बीजेपी की इलेक्शन कैम्पेनिंग में नेताओं की जमकर रेलमपेल रही।

 

इसके साथ ही जमीनी कैडर को मैदान में उतारने के मामले मे भी पार्टी पूरे चुनाव अभियान के दौरान काफी हद तक सफल साबित हुई। यही वो सबसे बड़े कारण हैं जो इस बार के ग्वालियर विधानसभा के चुनावी माहौल को बीजेपी और कांग्रेस की रणनीतिक शैली के लिहाज से निर्णायक भूमिका निभाते नजर आते हैं। हालांकि अब मतगणना के लिए दो दिन का ही समय बाकी है और 10 नवंबर को यह पूरी तरह साफ हो जाएगा कि किस पार्टी के दावों और वादों पर जनता ने अपना भरोसा जताया है। 

 
स्टार प्रचारकों के मामले में भी मायूस रही कांग्रेस चुनावी फिजा को खास तौर से गरमाने और अपनी पार्टी के प्रत्याशियों के पक्ष में हवा बनाने के मामले में स्टार प्रचारकों का बड़ा रोल माना जाता है।
इस मामले में भी पूरे चुनाव अभियान के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी को केवल पूर्व सीएम व पार्टी अध्यक्ष कमलनाथ के रोड शो और सभा के अलावा इक्का-दुक्का स्टार प्रचारक का साथ मिल पाया। वहीं दूसरी ओर बीजेपी के चुनाव अभियान में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष व सांसद विष्णुदत्त शर्मा और सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित तमाम नेताओं ने जमकर माहौल बनाया।
 
 
पुराने गढ़ों में भी कमजोर रही कांग्रेस की पकड़ इस बार कांग्रेस ऐन मतदान के दिन तक विधानसभा के अंतर्गत आने वाले अनेक उन क्षेत्रों में भी अपनी पकड़ को कायम नहीं रख पाई, जो उसके परंपरागत गढ़ माने जाते थे। इसका असल कारण सूबे में सत्ता परिवर्तन के साथ ही क्षेत्र के अनेक इलाकों में पार्टी के संगठन का कमजोर हो जाना और वहां नए नेटवर्क का खड़ा नहीं हो पाना है। पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस इस समस्या से जूझती रही, जबकि दूसरी ओर भाजपा का मजबूत कैडर बूथ लेबल तक मोर्चे पर डटा रहा। इससे भाजपा के समर्थकों में शुरुआत से बना उत्साह का माहौल वोटिंग के करीब आते-आते और बढ़ता रहा, जिसका असर मतदान में नजर आया। 
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