इंदौर: मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के खजराना क्षेत्र में एक युवक, हैदर शेख, जो इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म अपना कर हरिनारायण बन गया था, के घर पर हाल ही में पत्थरबाजी और जान से मारने की धमकी का मामला सामने आया था। हैदर शेख ने इस घटना को कट्टरपंथियों की ओर से किए गए हमले के रूप में देखा था। लेकिन पुलिस की जांच में यह मामला कुछ और ही निकला।
पुलिस का खुलासा: रिश्तेदारों का निकला हाथ
खजराना पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज और पड़ताल के आधार पर खुलासा किया कि फरियादी हरिनारायण उर्फ हैदर शेख के घर पर हमला करने वाले कोई अज्ञात कट्टरपंथी नहीं, बल्कि उनके ही रिश्तेदार थे। थाना प्रभारी मनोज सिंह सेंधव ने बताया कि हरिनारायण के घर शुभम उर्फ उमाशंकर बिल्लोरे, आकाश श्रीवास, और एक लड़की आई थी, जो उसकी भतीजी निकली।
मदद मांगने आई भतीजी ने फेंके थे कंकर
पुलिस जांच में सामने आया कि हरिनारायण की भतीजी, जो उसकी पत्नी की मुंह बोली बहन साजिया हाशमी की बेटी है, घर के अंदर मदद मांगने आई थी। उस रात उसका अपनी माँ के साथ झगड़ा हुआ था, और वह हरिनारायण से सहायता मांगने के लिए उनके घर आई थी। जब उसने दरवाजा खटखटाया और कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो उसने छोटे-छोटे कंकर दरवाजे पर फेंके ताकि घर के लोग जाग जाएं। जब भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला, तो वह रेपिडो बुक कर अपनी सहेली के घर चली गई।
पहले धर्मांतरण से नाराजगी की आशंका
इस घटना के बाद हरिनारायण ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि कट्टरपंथियों ने धर्मांतरण से नाराज होकर उनके घर पर हमला किया। उनका दावा था कि पत्थरबाजी के साथ-साथ “सर तन से जुदा” जैसे नारे भी लगाए गए थे, और जान से मारने की धमकी भी दी गई थी। इस कारण मामला और गंभीर हो गया था, और पुलिस ने तत्काल जांच शुरू की थी।
पूरे मामले का खुलासा
पुलिस ने गंभीरता से मामले की जांच करते हुए सीसीटीवी फुटेज की मदद से आरोपियों की पहचान की। जब भतीजी से पूछताछ की गई, तो उसने इस पूरी घटना का खुलासा किया और बताया कि यह हमला नहीं, बल्कि एक गलतफहमी का परिणाम था। इस खुलासे के बाद पुलिस ने स्पष्ट किया कि घटना में किसी कट्टरपंथी समूह का हाथ नहीं था, बल्कि यह पारिवारिक विवाद से उपजी एक स्थिति थी।
इंदौर के इस मामले ने शुरू में कट्टरपंथियों द्वारा धर्मांतरण के विरोध में हिंसक प्रतिक्रिया का शक पैदा किया था, लेकिन पुलिस जांच में यह साफ हुआ कि यह घटना पारिवारिक रिश्तों के कारण हुई। हालांकि, इस मामले ने धर्मांतरण से जुड़े सामाजिक तनाव और संवेदनशीलता को एक बार फिर उजागर कर दिया है।