भोपाल । मध्य प्रदेश में 48 प्रतिशत मतदाता अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के हैं। यह दावा राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग ने गुरुवार को सरकार को सौंपी रिपोर्ट में किया है। इस आधार पर आयोग ने त्रिस्तरीय पंचायत (ग्राम, जनपद और जिला) और नगरीय निकाय (नगर परिषद, नगर पालिका और नगर निगम) में 35 प्रतिशत आरक्षण पिछड़ा वर्ग को देने की अनुशंसा की है। साथ ही कहा है कि इसके लिए संविधान में संशोधन करने के लिए राज्य सरकार की ओर से केंद्र सरकार को प्रस्ताव भी भेजा जाए। आयोग की यह रिपोर्ट शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को पंचायत चुनाव कराने संबंधी याचिका पर सुनवाई हुई। कांग्रेस के सैयद जाफर, जया ठाकुर सहित अन्य की याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से बताया गया कि पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग ने रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। प्रदेश में ओबीसी की आबादी 57 प्रतिशत है। यचिकाकर्ता के अधिवक्ता वरुण ठाकुर ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को यह रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। उधर, नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह, पिछड़ा वर्ग राज्य मंत्री रामखेलावन पटेल, आयोग के अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन, सदस्य प्रदीप पटेल और कृष्णा गौर ने पत्रकारवार्ता कर बताया कि आयोग ने प्रथम प्रतिवेदन शासन को सौंप दिया है।
इसमें प्रदेश की मतदाता सूची का परीक्षण करने पर पाया गया कि 48 प्रतिशत मतदाता अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं। कुल मतदाताओं में यदि अनुसूचित जाति और जनजाति के मतदाताओं को घटा दिया जाए तो शेष मतदाताओं में पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं का प्रतिशत 79 है। इस आधार पर त्रिस्तरीय पंचायत और नगरीय निकाय के सभी स्तरों पर पिछड़ा वर्ग के लिए 35 प्रतिशत स्थान आरक्षित किए जाएं। आयोग ने चुनाव में पिछड़ा वर्ग का आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए सरकार संविधान में संशोधन के लिए प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजे ताकि कानूनी समस्या न आए।
आयोग ने सरकार से कहा कि जनसंख्या के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग बहुल जिला एवं ब्लाक घोषित किए जाएं। इनमें बस्ती विकास जैसे कार्य किए जाएं और सभी विकास की योजनाओं को क्रियान्वित किया जाए। साथ ही राज्य की पिछड़ा वर्ग की सूची में जो जातियां केंद्र की अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में शामिल नहीं हैं, उन्हें जोड़ने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जाए। केंद्र की पिछड़ा वर्ग की सूची में जो जातियां मध्य प्रदेश की सूची में सम्मलित नहीं हैं, उन्हें राज्य की सूची में शामिल किया जाए।
ऐसे हो सर्वे
आयोग के अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन ने बताया कि जिलों में कलेक्टरों के माध्यम से मतदाता सूची का परीक्षण कराया गया। इसके आधार पर पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को चिह्नित किया गया। 82 सामाजिक संगठनों से सुझाव और ज्ञापन लिए। 156 सुझाव ईमेल और 853 वेबसाइट पर प्राप्त हुए।
ओबीसी आरक्षण की वजह से अब तक नहीं हो पाए चुनाव
सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर 2021 को त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर रोक लगा दी थी। सरकार ने 27 प्रतिशत आरक्षण के अनुसार सीटें आरक्षित की थीं। कोर्ट ने मनमोहन नागर की याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिए थे कि पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित स्थानों को अनारक्षित श्रेणी में अधिसूचित किया जाए।
सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी और पुनर्विचार याचिका दायर भी है पर कोर्ट ने ओबीसी के आंकड़े जुटाने के आदेश दिए। इसके बाद सरकार ने जिस परिसीमन पर चुनाव कराए जा रहे थे, उसे निरस्त कर दिया, जिससे चुनाव कराने का आधार ही समाप्त हो गया। आयोग ने चुनाव निरस्त कर दिए और पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का गठन करके ओबीसी से संबंधित आंकड़े जुटाने की प्रक्रिया प्रारंभ की थी, जो अब पूरी हुई है।