छापामार कार्रवाई और रंगे हाथों रिश्वत लेने वाले कर्मचारियों को लेकर सरकार ने लिया ये बड़ा फैसला

भोपाल। छापामार कार्रवाई और रंगेहाथ रिश्वत लेते ट्रैप होने वाले कर्मचारियों को अब दोहरी जांच का सामना करना पड़ेगा। राज्य सरकार ने नौ साल पुराने एक आदेश को सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर निरस्त कर दिया। साथ ही 23 साल पुरानी (17 फरवरी 1999) व्यवस्था को फिर बहाल कर दिया। तब मप्र में दिग्विजय सिंह का शासन था।

 

सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से गुरुवार को जारी आदेश में कहा गया है कि लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू की जांच के समानांतर संबंधित विभाग भी जांच शुरू कर सकता है। विभागीय जांच में समान तथ्य व सबूत हो सकते हैं। नए आदेश में सुप्रीम कोर्ट के ‘राजस्थान सरकार वर्सेज बीके मीणा एंड अन्य (1999) 6 एससीसी 417’ का हवाला दिया गया है, जिसमें विभागीय जांच समानांतर किए जाने की बात कही गई है। विभाग ने इसका विधि विभाग से परीक्षण कराकर आदेश जारी कर दिए।

 

2013 में निरस्त किया था समानांतर जांच का आदेश

सामान्य प्रशासन विभाग ने 17 फरवरी 1999 को सर्कुलर जारी किया था कि लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू की जांच के साथ विभाग भी कर्मचारी के खिलाफ पड़ताल कर सकते हैं। 30 जुलाई 2013 को विभाग ने 1999 के निर्देश को यह कहकर निरस्त कर दिया कि समानांतर जांच में विभाग के ‘जांच अधिकारी’ अनावश्यक टिप्पणी लिखते हैं। इससे आगे की कार्रवाई व कोर्ट में दिक्कत होती है। अब फिर दिग्विजय सरकार के समय की व्यवस्था ही लागू हो जाएगी। मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू की जांच होने के बाद विभाग भी जांच कराता था, इसमें काफी वक्त लग रहा था।

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