बैतूल। बैतूल जिले में एक अनोखी बारात खूब चर्चा में है। यह बारात लग्जरी गाड़ियों में नहीं बल्कि पुराने समय की बैलगाड़ियों पर दुल्हन के घर पहुंची। इतना ही नहीं दुल्हन की विदाई भी बैलगाड़ी पर कराई गई। इस बारात में 1 नहीं बल्कि 30 से ज्यादा बैलगाड़ियां पहुंची थी। इस फर्राटेदार कारों के दौर में में बैलगाड़ी पर बारात को देखकर लोग भी अचंभित रह गए। वहीं बुजुर्ग की नजरों की आंखों में भी पुराने समय की झलक तैर गई।
यह अनोखी बारात बैतूल जिले के आमला ब्लॉक के बघवाड गांव से निकली थी. चैतराम कासदेकर नाम के आदिवासी युवक की शादी थी। कासदेकर और उसके परिवार ने अपनी परंपरा को जीवित रखने और शादी के अनावश्यक खर्च बचाने के लिए बैलगाड़ी पर अपनी बारात ले जाने का फैसला किया। इस बारात में अकेले दूल्हा ही नहीं बल्कि सारे बाराती भी लगभग 30 से ज्यादा बैलगाड़ियों पर बैठकर दुल्हने के घर पहुंचे। सभी बैलगाड़ियों को परम्परागत तरीके से सजाया गया था। वहीं संगीत की बात करें तो डीजे या बैंड की जगह इस बारात में बांसुरी, ढोलक, घण्टियां और मंजीरों की सुकून देने वाली मीठी ध्वनि पर बारातियों ने जमकर डांस किया। ग्राम बघवाड के चैतराम अपनी दुल्हन नीतू को लेने जब बैलगाड़ी पर सवार होकर पहुंचे तो उनका भव्य स्वागत हुआ।
मुलताई तहसील में भी एक बारात बैलगाड़ियों पर निकाला है। मुलताई तहसील के खड़की गांव में भी एक बारात बैलगाड़ियों पर निकाली गई। जहां एक दूल्हा सजी-धजी बैलगाड़ियों पर सवार होकर बारात लेकर रवाना हुआ। ये बारात भी लगभग 5 किमी दूर ग्राम पांढरी तक गई थी। बैतूल के जनजातीय और ग्रामीण क्षेत्रो में इन दिनों लोग महंगाई से बचने के लिए अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं। जिसके दो फायदे हैं। पहला तो ये शादियां बेहद कम बजट में हो जाती हैं। साथ ही इन फैसलों से लुप्त हो रही परम्पराएं दोबारा जीवित हो रही हैं। आदिवासी समाज के प्रतिनिधि अपील कर रहे हैं कि लोग अब हमेशा अपनी परम्परा के अनुसार ही विवाह आयोजन करें।