भोपाल। मध्य प्रदेश में अब नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्षों का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होगा। इस नई व्यवस्था के तहत जनता सीधे अध्यक्ष का चुनाव करेगी। इससे पहले शिवराज सरकार द्वारा लागू अप्रत्यक्ष प्रणाली, जिसमें पार्षदों के माध्यम से अध्यक्ष चुने जाते थे, को समाप्त किया जाएगा।
नई व्यवस्था और पुराने प्रावधान
नई व्यवस्था लागू होने के बाद मतदाता सीधे अध्यक्ष का चुनाव करेंगे। साथ ही, ‘खाली कुर्सी भरी कुर्सी’ का प्रावधान भी बहाल किया जाएगा, जिससे अध्यक्ष को वापस बुलाने की प्रक्रिया संभव होगी।
व्यवस्था में हुए बदलावों का इतिहास
1.पहले का प्रावधान
नगर निगम के महापौर और नगर पालिका एवं परिषद के अध्यक्ष का चुनाव जनता सीधे करती थी।
2.कमल नाथ सरकार का निर्णय
2019 में, कमल नाथ सरकार ने महापौर और अध्यक्ष का चुनाव पार्षदों के माध्यम से कराने का निर्णय लिया, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका।
3.शिवराज सरकार का बदलाव
मार्च 2020 में सत्ता में लौटने के बाद शिवराज सरकार ने पुराने प्रत्यक्ष प्रणाली वाले प्रावधान को बहाल करने की कोशिश की।
2022 में महापौर का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराने का निर्णय लिया गया, लेकिन नगर पालिका और परिषद के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने का प्रावधान लागू कर दिया।
क्यों जरूरी हुआ बदलाव
अप्रत्यक्ष प्रणाली के तहत पार्षदों का समर्थन नहीं मिलने के कारण कई निकायों में अविश्वास प्रस्ताव पेश किए गए। इससे बचने के लिए सरकार ने नगर पालिका अधिनियम 1961 में संशोधन किया। अब अविश्वास प्रस्ताव तीन साल के बाद ही लाया जा सकता है और इसे पारित करने के लिए तीन-चौथाई पार्षदों का समर्थन अनिवार्य कर दिया गया है।
नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव
-नगरीय निकाय चुनाव
प्रदेश में अगले नगरीय निकाय चुनाव 2027 में होंगे।
-जिला और जनपद पंचायत चुनाव
जिला और जनपद पंचायत अध्यक्षों का चुनाव भी प्रत्यक्ष प्रणाली से कराने की तैयारी है। इसके लिए पंचायतराज अधिनियम में संशोधन किया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ का उदाहरण
मध्य प्रदेश की तरह छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस सरकार ने अप्रत्यक्ष प्रणाली को बदलकर अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता से कराने का निर्णय लिया है।
नए बदलाव की उम्मीद
प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने से अध्यक्ष को जनता के प्रति अधिक जवाबदेह बनाया जा सकेगा और पार्षदों पर अनावश्यक दबाव और प्रलोभन की शिकायतें भी कम होंगी।