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Tuesday, November 12, 2024

एक-दूसरे पर पत्थर बरसाए, किसी की आंख फूटी, किसी की पसली टूटी, पुलिस देखती रही

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पांढुर्णा: पांढुर्णा जिले की जाम नदी के दोनों किनारों पर सैकड़ों लोग जमा हैं, जो एक-दूसरे पर पत्थर बरसा रहे हैं। इस हिंसक परंपरा के दौरान कुल 600 लोग घायल हो चुके हैं, जिनमें से 8 की हालत गंभीर है। किसी की पसली टूट गई है, तो किसी की आंख फूट गई है।

आमतौर पर ऐसी घटनाओं में पुलिस द्वारा पथराव, बलवा, उपद्रव और जानलेवा हमले के प्रयास में केस दर्ज कर लिया जाता है, लेकिन यहाँ इस परंपरा को निभाने के लिए 358 पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे। इसके अलावा, 27 डॉक्टरों की टीम भी घायलों के इलाज के लिए मौजूद थी।

3 सितंबर को पांढुर्णा और सावरगांव के लोगों ने एक-दूसरे पर पत्थर बरसाए। इस आयोजन में नदी के बीच पलाश के पेड़ को काटकर लगाया गया और उस पर झंडे लगाए गए। पांढुर्णा के लोग झंडा निकालने के लिए नदी में उतरे, जबकि सावरगांव के लोग उन्हें रोकने के लिए पत्थर बरसाने लगे। देखते ही देखते पथराव तेज हो गया और लोग लहूलुहान होकर भागने लगे।

प्रशासन की सुस्ती और चिकित्सा की तैयारी

इस परंपरा को रोकने में प्रशासन भले ही सुस्त रहा हो, लेकिन घायलों के इलाज के लिए उसने तत्परता दिखाई। कलेक्टर अजय देव शर्मा के आदेश पर नदी किनारे एंबुलेंस तैनात की गई थीं और 27 डॉक्टरों की टीम को इलाज के लिए लगाया गया था। इस खेल में किसी की पसली टूट गई, किसी की आंख फूट गई, तो कुछ के सिर में गंभीर चोटें आईं। 8 लोगों को गंभीर हालत में नागपुर रेफर किया गया है।

सीएमओ नितिन बिजवे ने बताया कि इस आयोजन को कवर करने के लिए नगर पालिका प्रशासन ने 3 ड्रोन कैमरे और 16 सीसीटीवी कैमरे लगाए थे। हालांकि, उनका ध्यान आयोजन को केवल प्रचारित करने पर ही था। टीआई अजय मरकाम का कहना है कि पुलिस को अब तक कोई शिकायत नहीं मिली है, इसलिए कार्रवाई नहीं की जा सकी।

गोटमार मेले के पीछे कई कहानियां जुड़ी हुई हैं। एक मान्यता के अनुसार, हजारों साल पहले जाम नदी के किनारे पिंडारी समाज का एक किला था, जहाँ पिंडारी सेना ने भोसले राजा की सेना को पत्थरों से हराया था। तब से इस परंपरा की शुरुआत हुई। एक अन्य कहानी प्रेम प्रसंग से जुड़ी है, जहाँ पांढुर्णा और सावरगांव के एक प्रेमी जोड़े को पत्थर मारकर मार दिया गया था, और तब से इस परंपरा का निर्वाह किया जा रहा है।

इस मेले में 1995 से 2023 तक 13 लोगों की मौत हो चुकी है। 1978 और 1987 में प्रशासन ने इसे रोकने के लिए गोलीबारी भी की थी, जिसमें दो लोगों की मौत हुई थी। प्रशासन ने 2001 में पत्थरों की जगह प्लास्टिक की गेंदों का इस्तेमाल करने की कोशिश की थी, लेकिन गोटमार में भाग लेने वाले लोगों ने इसे अस्वीकार कर दिया और पत्थरों से हमला जारी रखा।

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