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Saturday, September 21, 2024

शिवराज सरकार का अधिकारियों के प्रमोशन को लेकर ये बड़ा फैसला

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भोपाल। भोपाल में स्कूल शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अधिकारियों की सुविधाभोगी सोच ने उन 80 हजार शिक्षकों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है, जिन्हें वर्ष 2018 में अध्यापक से शिक्षक संवर्ग में लाया गया है। जिम्मेदार अधिकारी अपना काम कनिष्ठ से कराना चाहते हैं, इसलिए तीन साल से शिक्षकों को क्रमोन्नति नहीं मिल रही है। इतना ही नहीं, इस कारण सेवा पुस्तिका अपडेट नहीं हो रही हैं और उन्हें छठवें-सातवें वेतनमान का एरियर नहीं मिल पा रहा है। क्रमोन्नति की नोटशीट पिछले तीन साल से लोक शिक्षण संचालनालय, सचिवालय, विभाग के मंत्री एवं वित्त विभाग के बीच घूम रही है। सामान्य प्रशासन विभाग के नियम अनुसार किसी भी कर्मचारी को नियोक्ता (नियुक्त करने वाला अधिकारी) ही क्रमोन्नति या समयमान वेतनमान का लाभ दे सकता है। यह व्यवस्था सभी विभागों में लागू है पर वर्ष 2014 में स्कूल शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों ने क्रमोन्नति को लेकर होने वाली कानूनी झंझट से बचने के लिए अपने अधिकार कनिष्ठ अधिकारियों को सौंप दिए थे।

यही निर्णय आज 80 हजार शिक्षकों को भारी पड़ रहा है। वर्तमान अधिकारी भी चाहते हैं कि वर्ष 2014 की ही व्यवस्था लागू रहे और शासन इसके लिए तैयार नहीं है। इसी मुद्दे पर सहमति बनाने के लिए तीन साल से नोटशीट घूम रही है। स्कूल शिक्षा विभाग में पुराने संवर्ग के व्याख्याता की नियुक्ति आयुक्त लोक शिक्षण, उच्च श्रेणी शिक्षक की संभागीय संयुक्त संचालक व सहायक शिक्षक की जिला शिक्षा अधिकारी ने की है। यही फार्मूला क्रमोन्नति पर लागू होता है, पर काम के बोझ के मारे अधिकारियों ने वर्ष 2014 में इस व्यवस्था को ही पलट दिया।

आयुक्त ने अपने अधिकार संभागीय संयुक्त संचालक और संभागीय संयुक्त संचालक ने जिला शिक्षा अधिकारी को सौंप दिए। यानी नियुक्ति भले ही आयुक्त ने की हो, पर व्याख्याता संवर्ग को अन्य लाभ देने की जिम्मेदारी संभागीय संयुक्त संचालक निभाएंगे और उच्च श्रेणी शिक्षक व सहायक शिक्षक की नियुक्ति की जिला शिक्षा अधिकारी। करीब 55 हजार शिक्षकों की नियुक्त जनजातीय कार्य विभाग में भी हुई है, पर वहां ऐसी स्थिति नहीं है। इसलिए नियोक्ता कर्मचारियों को तय समय पर क्रमोन्न्ति का लाभ दे चुके हैं।

इनका कहना है हम इस संबंध में विभाग के मंत्री, प्रमुख सचिव, संचालक तक से बात कर चुके हैं। सभी कहते हैं, जल्द ही निर्णय होगा, पर कुछ नहीं हो रहा है और कब तक इंतजार करें। इससे कर्मचारियों को नुकसान हो रहा है।

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