भोपाल। कोरोना कई लोगों को कभी न खत्म होने वाला दर्द दे गया। भोपाल में छह बहनों पर यह काल बनकर टूटा। मां थी नहीं, पिता भी कोरोना में चल बसे। दो बेटियों की शादी पिता ने कराई, लेकिन 4 बहनें अनाथ हो गईं। इन बेटियों के सामने घर चलाने की चुनौती थी ही। पिता के इलाज और दुकान के लिए उठाया कर्ज भी चुकाना था। इस चुनौती से निपटने का बीड़ा उठाया चौथे नंबर की बेटी रेशमा ने। उसने तीसरे नंबर की अपनी बड़ी बहन रज्जो (काल्पनिक नाम) की शादी कराई, बल्कि छोटी दो बहनों काे भी संभाला। 20 साल की रेशमा ने घर में बंद हुई किराना दुकान को फिर खोला और अपने हाथ में बागडोर ली। बड़ी बहन रज्जो को हिम्मत दी तो दो छोटी बहन आयशा, मुन्नी (दोनों का काल्पनिक नाम) को बेटियों की तरह पालने लगी। उसके पास एक और चुनौती थी कर्ज चुकाने की, जो पिता के इलाज के समय लिया गया था। इन तमाम मुश्किलों के बावजूद उसने बड़ी बहन रज्जो की शादी कराने का फैसला किया जो तब टल गई थी। कुछ पैसे जोड़े और कुछ पहचान वालों से सामान उधार लेकर छोटी बहनों के साथ मिलकर बड़ी बहन रज्जो की शादी कराई।
रेशमा ने बताया कि इस दौरान दूसरे नंबर की बहन के पति ने भाई की तरह मदद की। तीसरे नंबर की बहन जिसकी शादी हो रही थी, उनके परिवारवालों ने भी कोई डिमांड नहीं की। शादी में तामझाम भी नहीं करने को कहा।रेशमा बताती हैं, पिता ने 2-3 साल पहले दुकान खोलने के लिए उनके नाम पर किसी स्मॉल बैंक से लोन लिया था। पिता के चले जाने के बाद लोन वालों की तरफ से लगातार नोटिस और पैसे की मांग की जाने लगी। अब उनके सामने बैंक के लोन के साथ पिता के इलाज और बहन की शादी का उधार चुकाने की जिम्मेदारी है। इससे बड़ा जिम्मा अपनी दोनों छोटी नाबालिग बहनों को पढ़ाने और उनकी शादी कराने की है। रेशमा का कहना है कि जब तक दोनों बहनें अपने पैर पर खड़ी नहीं हो जातीं, इनकी पढ़ाई पूरी नहीं होती, वो अपने बारे में कुछ नहीं सोच सकतीं। इनके लिए वे अब माता-पिता और बड़े भाई की जिम्मेदारी निभाएंगी।
तीनों बहनों ने बताया कि पिता के निधन के बाद उन्होंने नगर निगम में परिवार सहायता के लिए आवेदन लगाया था। कई बार चक्कर लगाने पड़े, तब 5-6 महीने बाद सिर्फ 20 हजार रुपए की मदद मिली। इसके अलावा पिता के कोरोना से निधन होने के बाद मुख्यमंत्री कोविड चाइल्ड केयर योजना का लाभ नहीं मिल पाया। अधिकारियों का कहना था कि वे जनवरी में खत्म हुए हैं, जबकि यह योजना मार्च से जून 2021 में कोरोना से माता-पिता खोने वाले बच्चों के लिए थी। महिला बाल विकास की तरफ से अधिकारियों को जब ऐसे परिवार की जानकारी मिली तो उन्होंने तीनों बहनों से पिता के कोरोना से इलाज-मौत के कागजात लिए और इस साल से स्पॉन्सर योजना के तहत 2 हजार रुपए महीने पेंशन की शुरुआत की।
भोपाल जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) योगेंद्र सिंह यादव ने बताया पिता के जाने के बाद इस परिवार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। कोविड से पिता की मौत की अनुग्रह राशि 50 हजार रुपए इन्हें दिलवाई गई है। दोनों नाबालिग बहनों को4 हजार रुपए की पेंशन दी जाएगी। इनका स्कूल में भी एडमिशन कराया गया है। हेल्थ बीमा के साथ 23 साल की उम्र होने पर दोनों लड़कियों के खाते में एकमुश्त पैसे भी दिए जाएंगे।