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Sunday, November 17, 2024

सीएम शिवराज के लिए मुसीबत बनी उमा भारती

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भोपाल । पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती शराबबंदी का अभियान चलाने का ऐलान कर शिवराज सरकार के लिए मुसीबत बनती दिख रही हैं। उन्होंने भोपाल में शराब दुकान में पत्थर मारकर सुर्खियां बटोरीं, लेकिन सरकार और प्रशासन मौन रहा। कांग्रेस ने इस मुद़दे पर सरकार को घेरा, लेकिन सत्ता और संगठन से कोई अधिकृत प्रतिक्रिया नहीं आई। राजनीति के जानकार कहते हैं कि मध्य प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं और एक जमाने में बीजेपी की फायर ब्रांड नेता रहीं उमा भारती फिलहाल साइड लाइन हैं। उनकी सक्रियता से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे एमपी में फिर खोई राजनीतिक जमीन वापस चाहती हैं।

कोरोना काल में जब शराब ही सरकारों की आमदनी का अहम जरिया रही, तब उमा भारती ने राज्य में शराब बंदी की मांग उठाई। पिछले साल अक्टूबर में उन्होंने ऐलान किया कि अगर शिवराज सरकार ने प्रदेश में शराबबंदी नहीं की तो वे लट्ठ लेकर शराब की दुकानें बंद कराएंगी। इसके लिए उन्होंने 15 जनवरी 2022 की तारीख दी। लेकिन इस तारीख को वह भोपाल ही नहीं पहुंची। बताया गया कि वे पुरी में जगन्नाथजी की सेवा कर रहीं थीं।

बाद में उन्होंने 14 फरवरी से आंदोलन चलाने की बात कही। लेकिन फिर गायब हो गईं। ठीक एक महीने बाद 13 मार्च को वे भोपाल में एक शराब की दुकान पर पहुंचीं। शराब की बोतलों पर एक बड़ा पत्थर मारा और दुकान से निकल गईं। उनकी इस हरकत पर सरकार और प्रशासन दोनों ही मौन हैं। भाजपा ने यह जरूर कहा कि उमा के इस आंदोलन से पार्टी का लेना-देना नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि उमा भारती बीजेपी का जाना-पहचाना चेहरा हैं। वे केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रही हैं। बतौर सीएम वह मध्‍यप्रदेश की कमान संभाल चुकी हैं। उन्हें आक्रामक तेवरों के लिए जाना जाता है। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद तस्‍वीर काफी बदली है। पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया था। तब से वह नई जिम्मेदारी के इंतजार में हैं। माना जाता है कि इस छटपटाहट में ही वे कुछ ऐसा करती हैं जिससे लाइमलाइट में रहें। पार्टी हाईकमान में उनकी लोकप्रियता घटी है। वह पॉलिटिकल सीन से भी गायब होती जा रही हैं

 

आपको बात दे उमा भारती ने शराबबंदी आंदोलन का ऐलान पिछले साल जनवरी महीने में किया था। तब उन्होंने कहा था- शराबबंदी का निर्णय लेने के लिए राजनीतिक साहस की जरूरत होती है। शराब माफिया, राजनेता और ब्यूरोक्रेसी को अपनी जकड़न में ले लेता है। राजस्व आमदनी के दूसरे उपाय भी हैं। यहां श्वेत क्रांति हो सकती है। लोगों की जान की कीमत पर धन की उगाही ठीक नहीं है।

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