भोपाल। भारतीय जनता पार्टी (BJP) लगातार अपने मुख्यमंत्रियों को बदल रही है, अब ऐसे में एक बार फिर सियासी गलियारों में मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के मुख्यमंत्री बदले जाने की चर्चा जोर पकड़ रही है। अटकलें तेज हैं कि क्या बीजेपी आलाकमान मध्य प्रदेश में भी अपना चेहरा बदल सकता है। दरअसल शुरुआत से ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) को लेकर बीजेपी के अंदर खाने बेहद कशमकश है, बीजेपी के कई नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर शिवराज सिंह चौहान को बैठे रहना नहीं चाहते। ऐसे में गुजरात का मुख्यमंत्री बदलने के बाद शिवराज सिंह चौहान को लेकर भी चर्चाएं बेहद तेज हो गई हैं।
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बीजेपी फिलहाल उपचुनाव तक शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी को हाथ लगाने से परहेज करेगी, क्योंकि शिवराज सिंह चौहान आज भी जमीनी नेता है। उन्हें जनता का नेता भी कहा जाता है, 15 साल के इतिहास में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हमेशा जनता के सुख दुख में शामिल रहे हैं। ऐसे में बीजेपी के सामने चुनौती यह है कि वह किसे अपना मुख्यमंत्री चुने दूसरी तरफ गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा(Dr Narottam Mishra), प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा(VD Sharma), कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya) अपनी बारी आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। जब-जब अन्य प्रदेशों के मुख्यमंत्री बदले जाते हैं, तब-तब इनके चेहरे पर अंदर से छुपी हुई मुस्कान जागृत हो जाती है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या बीजेपी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पद से हटाने का रिस्क लेगी और अगर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद से हटाया गया, तो क्या बीजेपी के पास वह करिश्माई नेतृत्व है जो मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज सिंह चौहान की जगह ले सकता है।
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हालांकि बीजेपी भीतर ही भीतर इस बात पर गहन चिंतन और मंथन भी कर रही है कि शिवराज को रिप्लेस करने के बाद किसे इस पद पर बैठाया जाए, कयास यही है कि शिवराज सिंह चौहान को उपचुनाव तक फिलहाल अभय वरदान मिला हुआ है। लेकिन अगर बीजेपी इस उपचुनाव में बेहतर परफॉर्म नहीं करती, तो शायद बीजेपी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को हटाने का मन बना सकती है। अब अग्नि परीक्षा शिवराज की है, वह कैसे इस उपचुनाव में प्रबंधन कर अपने नेतृत्व को साबित कर पाते हैं।
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इसके साथ ही दूसरी तरफ कमलनाथ के सिर पर भी खतरे की तलवार लटक रही है, अगर कांग्रेस ने इन उपचुनावों में बेहतर प्रदर्शन नहीं किया तो उन्हें भी पीसीसी चीफ जैसे महत्वपूर्ण पद से त्याग देना पड़ सकता है। क्योंकि उन पर यह दबाव रहेगा कि अगर इसी तरह पार्टी परफॉर्म करेगी, तो आने वाले 2023 के चुनाव में कांग्रेस सत्ता में कैसे आएगी।