नई दिल्ली। शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी की गई ताजातरीन रिपोर्टों के अनुसार, पिछले साल देशभर में 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में 65 लाख से अधिक छात्र असफल रहे। इनमें से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार का प्रदर्शन सबसे खराब रहा, जो राज्य सरकारों की शिक्षा नीतियों की गंभीर विफलता को उजागर करता है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 की बोर्ड परीक्षाओं में कक्षा 10वीं के लगभग 33.5 लाख छात्र अगली कक्षा में नहीं पहुँच पाए, जबकि 5.5 लाख छात्र परीक्षा में उपस्थित नहीं हुए। इसी तरह, कक्षा 12वीं में लगभग 32.4 लाख छात्र असफल रहे और 5.2 लाख ने परीक्षा ही नहीं दी। सबसे चिंताजनक बात यह है कि 10वीं कक्षा में गुजरात बोर्ड और 12वीं कक्षा में मध्य प्रदेश बोर्ड में असफल छात्रों की दर सबसे अधिक रही।
राज्यों की तुलना में सीबीएसई का बेहतर प्रदर्शन-
देशभर के 56 राज्य बोर्डों और तीन राष्ट्रीय बोर्डों के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि केंद्रीय बोर्ड (सीबीएसई) का प्रदर्शन राज्य बोर्डों की तुलना में कहीं बेहतर रहा। कक्षा 10वीं में सीबीएसई बोर्ड की विफलता दर 6 प्रतिशत थी, जबकि राज्य बोर्डों में यह दर 16 प्रतिशत से अधिक थी। कक्षा 12वीं में सीबीएसई की विफलता दर 13 प्रतिशत थी, जबकि राज्य बोर्डों में यह 18 प्रतिशत रही।
गुजरात और मध्य प्रदेश का निराशाजनक प्रदर्शन-
विशेष रूप से गुजरात और मध्य प्रदेश के बोर्डों में विफलता की दर अत्यंत चिंताजनक रही। गुजरात में 10वीं कक्षा में 40 प्रतिशत से अधिक छात्र असफल रहे, जबकि मध्य प्रदेश में 12वीं कक्षा में 40 प्रतिशत से अधिक छात्रों ने परीक्षा में सफलता नहीं प्राप्त की। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि इन राज्यों में शिक्षा प्रणाली में सुधार की दिशा में सरकार को और अधिक गंभीरता से काम करने की आवश्यकता है।
केरल में सबसे अच्छा प्रदर्शन-
इसके विपरीत, केरल में 10वीं कक्षा के 99 प्रतिशत छात्र पास हुए, और 12वीं कक्षा में पास होने का प्रतिशत 82 प्रतिशत रहा। यह प्रदर्शन अन्य राज्यों के मुकाबले काफी अच्छा है, जो शिक्षा व्यवस्था में बेहतर नीतियों और कार्यान्वयन को दर्शाता है।
लड़कियों का प्रदर्शन बेहतर-
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि सरकारी स्कूलों में लड़कियों की पासिंग दर लड़कों की तुलना में बेहतर रही। इसके बावजूद, देशभर में छात्रों के समग्र प्रदर्शन में पिछले वर्ष की तुलना में गिरावट आई है। इस स्थिति ने शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता और सुधार की दिशा में गंभीर प्रश्न उठाए हैं। सरकार को चाहिए कि वह इन आंकड़ों की गंभीरता से समीक्षा करे और तत्काल प्रभाव से ठोस और प्रभावी सुधारात्मक उपाय लागू करे, ताकि अगले वर्षों में छात्रों के प्रदर्शन में सुधार हो सके और विफलता की दर कम की जा सके।
पिछले 15 सालों से गुजरात और मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकारें सत्ता में हैं। इन वर्षों में, शिक्षा के क्षेत्र में कई योजनाएं और पहलें लागू की गई हैं, शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, इन दोनों राज्यों में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के स्तर पर लगातार गिरावट देखी जा रही है। बच्चे बेसिक स्तर की परीक्षाओं में भी पास होने में असफल हो रहे हैं, जो शिक्षा व्यवस्था की गंभीर स्थिति को दर्शाता है।
सरकार की योजनाएं और उनके प्रचार-प्रसार के बावजूद, वास्तविकता कुछ और ही है। गुजरात और मध्यप्रदेश में शिक्षा के ढांचे में सुधार की बजाय, समस्याओं का ढेर ही बढ़ता जा रहा है। यहाँ तक कि बच्चों की गुणवत्ता परक शिक्षा भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सरकार के शिक्षा के क्षेत्र में किए गए प्रयास वास्तव में प्रभावी रहे हैं या केवल प्रचार का हिस्सा हैं? शिक्षा में सुधार की दिशा में सही ठोस कदम उठाए गए हैं या नहीं, यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।