विदिशा: मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में स्थित महामाई माता मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यहां के पानी के विशेष गुणों के कारण इसे चमत्कारी भी माना जाता है। खासकर, यह मंदिर 1900 में फैली महामारी के बाद अपने नाम “महामाई” से जाना जाने लगा।
महामाई माता का मंदिर: एक ऐतिहासिक धरोहर
महामाई मंदिर मोहनगिरी में स्थित है और इसे आषाढ़ी माता के नाम से भी जाना जाता है। इसका इतिहास गहराई से जुड़ा हुआ है, जहां पहले चारों ओर तालाब हुआ करते थे। हालांकि, अब आबादी बढ़ने के कारण ये तालाब खत्म हो चुके हैं। मंदिर परिसर में आज भी एक बावड़ी है, जिसका पानी पीने और नहाने से त्वचा रोगों से राहत मिलती है।
नवरात्रि पर विशेष आकर्षण
नवरात्रि के दिनों में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। लोग विशेष रूप से देवी मां के दर्शन के लिए आते हैं और परंपरागत रूप से भोजन बनाने की प्रथा का पालन करते हैं। भक्त मां को भोग अर्पित करते हैं और फिर उसी प्रसादी का सेवन करते हैं। मान्यता है कि यहां आने से खांसी और बुखार जैसी बीमारियों का इलाज संभव है।
महामारी के दौरान स्थापित हुई आस्था
इस मंदिर का नाम “महामाई” तब पड़ा जब 1900 में महामारी फैल गई थी। उस समय श्रद्धालु यहां देवी दुर्गा की छोटी प्रतिमा के सामने आकर मन्नतें मांगते थे, और देवी की कृपा से उनकी सभी समस्याएं दूर हो जाती थीं। इसी कारण से मंदिर का नाम महामाई माता पड़ा।
1973 में स्थानीय लोगों ने चंदा इकट्ठा कर इस मंदिर का विस्तार किया। श्रद्धालुओं का मानना है कि देवी जगदंबा भवानी की कृपा से उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
महामाई मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह विदिशा की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक है। यहां के पानी की खासियत और देवी माता की कृपा से भक्तों को जहां शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है, वहीं यहां आस्था और विश्वास का भी गहरा रिश्ता जुड़ा है।