ग्वालियर। देश आगे बढ़ रहा है, सोच पीछे छूट रही है। इस बढ़ते देश, बढ़ती टेक्नोलॉजी का क्या फायदा जब एक लड़की न दिन में न रात में खुद को सुरक्षित महसूस करती है। चाहे घर में हो या बाहर हर जगह वो असुरक्षित है। ये समाज किस तरह से आगे बढ़ रहा है जब वो एक लड़की को सुरक्षित माहौल नहीं दे पा रहा। निर्भया के बाद हाथरस, खरगांव, ग्वालियर, और भी हर छोटे जिले से लेकर बड़े शहर तक की हर लड़की आज अपनी सुरक्षा पर सवाल कर रही है। क्या ये बदलता देश और बढ़ती टेक्नोलॉजी के पास उसके इस सवाल का जवाब है?
नहीं हमारी टेक्नोलॉजी के पास भी इस सवाल का कोई जवाब नहीं है….
“वेयर अ गर्ल इस सेफ” आज गूगल भी इस आसान सवाल पर या तो चुप है या फिर कुछ और ही नतीजे दिखा रहा है। जैसे लड़की घर सुरक्षित कैसे पहुंचे। या वो पीरियड्स में सुरक्षित कैसे रहे। लेकिन इस सवाल का जवाब नहीं दे रहा। क्योकि इस आसान सवाल का जवाब न ही कोई प्रधानमंत्री दे सकता है, जो भारत को लोकल टू वोकल बनाना चाहता है न मुख्यमंत्री जिसके पास पीड़िताओं के परिवार तक से मिलने की फुर्सत नहीं है, बस जीतने के लिए खोखले वादे करते है न आम नागरिक जो इस वारदात का हिस्सा होता है, यानि मौन रहता है, और खास तोर से ये समाज, जो लड़कियों को ही इसका जिम्मेदार मानता है, और उन्ही पर रोक टोक लगाता है। रेप जैसी घटनाओ में सबसे बड़ा योगदान ये समाज खुद देता है। वैसे आम नागरिक और समाज ही इस सवाल के रचयिता है। कैसे? अभी बताती हूँ।
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आम नागरिक और समाज ही इस सवाल के रचयिता
आम नागरिक और समाज को इस सवाल के रचयिता इसलिए कहा क्योकि अगर आम आदमी अपनी हवस पर काबू करे और किसी भी लड़की के साथ कुछ भी गलत करने से पहले एक बार अपनी माँ जिसने उसे जन्म दिया उसके बारे में सोचे या उस बहन के बारे में सोचे जो खुद भी कही काम करने या पढ़ने जाती है। अरे अरे अरे………..एक मिनिट कुछ याद आया ये समाज जो हवस का भूखा है ये तो अपनी माँ, बहन, बेटी किसी को नहीं छोड़ता। क्योकि कई ऐसे भी केसेस है जिसमे घर के ही किसी सदस्य ने अपने ही घर की लड़की को अपनी हवस का शिकार बनाया और उसे रोज मरने के लिए, और पल पल तड़पने या खुद से नफरत करने के लिए छोड़ दिया। जब कभी वो लड़की जिसके साथ रेप हुआ अगर ‘उसने अपना मुँह खोला तो समाज बोला’ इस लड़की की ही गलती होगी। ऐसे में परिवार तक नहीं सुनता, अगर सुन भी लेता है तो “इसी समाज” के डर से शांत रहने की सलहा देता है। हाँ हाँ वही समाज जो ये रेप जैसी घटनाओ पर मौन हो जाता है या सड़को पर मोमबत्ती लेकर खड़ा हो जाता है। फिर सरकार से इंसाफ की गुहार लगता है। और कानून कहता है “इंसाफ कैसा इंसाफ” हुआ क्या था।
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अब बात करते है हुआ क्या था
सबसे बड़ा सवाल हुआ क्या था? अब जिसके साथ रेप जैसा संगीन जुर्म हुआ उसे ये बताना पढ़ेगा की जिसने उसके साथ ये किये उसने कैसे किया, कहा छुआ, शुरुवात कैसे हुई, और क्या क्या किया, जैसे फिजूल के सवाल जिनका जवाब खुद रेप शब्द के अंदर निहित है। ये देश के पुलिस वाले ही है, हाँ हाँ वही क़ानूनी पहरेदार जो रेप जैसी घटनाओ में भी अपराधी को बचाने के लिए गलत धराये लगाते है। वही पीड़िता से ऐसे सवाल करते है। अब आप सोच रहे होंगे की ऐसा कौन सा केस है जिसमे पुलिस ने आरोपियों को बचाने की कोशिश की, अभी हाल ही का हाथरस केस देख लीजिये। जिसमे पुलिस ने पीड़िता की लाश परिवार की बिना अनुमति के देर रात जला दी। फिर सुबह हाथरस में 144 धारा लगा दी ताकि कोई इस बार पर परिवार वालो से सवाल ना कर सके।
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