ग्वालियर। चंबल संभाग की चुनावी सभाओं में जुट रही भीड़ और कोरोना के नियमों के उल्लंघन पर हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई है। जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अपने 3 अक्टूबर के आदेश का पालन करने के निर्देश दिये हैं। कोर्ट ने न्याय मित्रों द्वारा भीड़ के साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत फोटो के आधार पर जिला प्रशासन को आदेश दिया कि कोरोना की गाइड लाइन का उल्लंघन करने वाले और राजनैतिक कार्यक्रमों में भीड़ जुटाने वाले नेताओं के खिलाफ पहले FIR दर्ज कराए फिर इन्वेस्टिगेशन करे।
कोरोना की गाइड लाइन के उल्लंघन को लेकर आशीष प्रताप सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने कोरोना के दौर में हो रहे पॉलिटिकल कार्यक्रमों को लेकर मंगलवार को बड़ा आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व विधायक मुन्नालाल गोयल, कांग्रेस प्रत्याशी सुनील शर्मा, सतीश सिकरवार, फूल सिंह बरैया, कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत और भाजपा प्रत्याशी प्रद्युम्न सिंह तोमर पर एफआईआर के आदेश दिए हैं |
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इन नेताओं पर आरोप है कि इन्होंने कोरोना की गाइडलाइन का उल्लंघन किया है और राजनैतिक कार्यक्रमों में 100 लोगों से अधिक की भीड़ जुटाई है। साथ ही कोर्ट ने कहा है कि पहले इन पर एफ़आईआर की जाएं उसके बाद इन्वेस्टिगेशन की जाए। हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान न्यायमित्रों एडवोकेट राजू शर्मा, संजय द्विवेदी और वीडी शर्मा ने भी फोटो सहित अपनी रिपोर्ट पेश की, जिस पर प्रशासन ने भी जवाब दिया।
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वहीं अतिरिक्त महाधविक्ता अंकुर मोदी ने न्यायमित्रों व याचिकाकर्ता के तर्कों का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि जो फोटोग्राफ व कार्यक्रमों की जानकारी पेश की है उनकी जांच करनी पड़ेगी। आम लोग शिकायत करने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। इस वजह से कार्रवाई नहीं हो पा रही है। इसके जवाब में याचिककार्ता के अधिवक्ता सुरेश अग्रवाल ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता 8 आवेदन दे चुके हैं, लेकिन किसी भी आवेदन को संज्ञान में लेकर प्रशासन व पुलिस ने केस दर्ज नहीं किया है।
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हर कार्यक्रम में कोरोना की गाइडलाइन का उल्लंघन हो रहा है। न्यायमित्रों की ओर से बताया गया कि कोरोना का संक्रमण फैलना कम नहीं हुआ है। इसमें ढिलाई नहीं, कड़ाई बरतनी चाहिए। न्यायमित्रों ने राजनीतिक कार्यक्रमों के फोटो पेश किए। मंच पर बैठे मुख्य अतिथि व मंच के नीचे बैठे दोनों ही जगहों पर सुरक्षित शारीरिक दूरी का पालन नहीं किया जा रहा था। प्रशासन को जिस तरह की कार्रवाई करनी चाहिए, वैसी नहीं की जा रही है। जिसके बाद कोर्ट ने ये आदेश दिया है।